सुबह जल्दी उठ कर स्नान-ध्यान कर लेने के बाद मन के उफान को रोकते नाश्ता कर रहे मोहन के माँ को लगा रहा था की आज वो किस तरह उसे दो रोटी ज्यादा खिला दे। उसे लग रहा था कि उसकी इकलौती संतान मोहन आज यदि दो रोटी ज्यादा खा के जायेगा तो इंटरव्यू में उसका सलेक्शन होने से कोई रोक नहीं पायेगा और उसका बेटा नियुक्ति पत्र लेकर ही अपने घर आएगा। फिर, फिर क्या? उसकी भोली भाली अनपढ़ माँ शान से सबसे कहेगी कि मेरे प्यारे मोहन को नौकरी मिल गयी। वो पुरे मुहल्ले घूमेगी और इस कदर सबसे मिलेगी कि, कोई भी व्यक्ति मिठाई खाने से वंचित न रह जाए। आखिर सोचे भी क्यों नहीं मोहन दुनिया के लिए भले ही कुरूप और बदरंग था पर उसके लिए तो उसका बेटा था। किचन में बेलन लिए खड़ी मोहन के लिए जन्नत उसकी प्यारी बूढ़ी माँ इतना सोचने में मशगूल थी कि, उसे पता भी नहीं चला कि, पहले से ही काफी लेट हो चुका मोहन उसके रोटी न सेक पाने की वज़ह एक रोटी कम ही खा मुह को धोकर घर से निकलने को तैयार था और जैसे ही बोला अच्छा माई अब मै जा रहा हूँ आशीर्वाद दे की आज नौकरी मिल ही जाय। यह शब्द सुन अचानक उसकी माँ का ध्यान टूटा और दौड़ते हु...
"स्वयं हमेशा खुश रहें और सदैव अच्छे लोगों को खुश रखने की कोशिश करें। प्रयास यह निरंतर होना चाहिए कि, आपकी कोई भी गतिविधि ऐसी ना हो जिससे किसी सज्जन जीव को किसी भी प्रकार के मुश्किल का सामना करना पड़े...।" -धर्मेश तिवारी