बात त्योहार की हो या फिर ख़ुशी के मौके की आज बहुतेरे मौकों पर बेहतरीन,ब्रांडेड और लाजबाब गरम मशालों के बीच मुर्गे या बकरी के मांस को उबलते और थाली की शोभा बढ़ाते कहीं भी आसानी से देखा जा सकता है। जी हाँ, यानि हम इन्शान इतने स्वार्थी हैं की अपनी एक छोटी सी ख़ुशी में बेजुबानो की बली बड़ी आसानी से चढ़ा देते है, लेकिन समझ में यह नहीं आता की आखिर उनका दोष क्या रहता है? उन्होंने हम इन्शानों का क्या बिगाड़ रख्खा है? क्या सिर्फ इस लिए की वो बेजुबान हैं या फिर इस लिए की वो जानवर हैं? जो हम कभी भी उनके घर को उजाड़ देने के साथ-साथ उनके बच्चो को अनाथ कर देते है आखिर वो भी तो किसी के माँ-बाप,भाई-बहन,या फिर प्यारे बच्चे होते हैं। आज बाजारों में कही न कहीं केवल पानी को पीकर अपने जीवन को जीने वाली अनेकों प्रजाति के मछलियों के साथ-साथ बकरी और मुर्गे का बोलबाला दिखता है अब तो शहरों में इसके लिए किनारे एक अलग मंडी(बाजार) का स्थान निर्धारित कर दिया जा रहा है जहाँ इन बेजुबानों को बड़ी आसानी से बेजान कर दिया जाता है और अगर गलती से कोई सुद्ध शाकाहारी इनके मंडी के तरफ पहुँच जाये तो कुछ दिनों तक तबियत ख़रा...
"स्वयं हमेशा खुश रहें और सदैव अच्छे लोगों को खुश रखने की कोशिश करें। प्रयास यह निरंतर होना चाहिए कि, आपकी कोई भी गतिविधि ऐसी ना हो जिससे किसी सज्जन जीव को किसी भी प्रकार के मुश्किल का सामना करना पड़े...।" -धर्मेश तिवारी