बात त्योहार की हो या फिर ख़ुशी के मौके की आज बहुतेरे मौकों पर बेहतरीन,ब्रांडेड और लाजबाब गरम मशालों के बीच मुर्गे या बकरी के मांस को उबलते और थाली की शोभा बढ़ाते कहीं भी आसानी से देखा जा सकता है। जी हाँ, यानि हम इन्शान इतने स्वार्थी हैं की अपनी एक छोटी सी ख़ुशी में बेजुबानो की बली बड़ी आसानी से चढ़ा देते है, लेकिन समझ में यह नहीं आता की आखिर उनका दोष क्या रहता है? उन्होंने हम इन्शानों का क्या बिगाड़ रख्खा है? क्या सिर्फ इस लिए की वो बेजुबान हैं या फिर इस लिए की वो जानवर हैं? जो हम कभी भी उनके घर को उजाड़ देने के साथ-साथ उनके बच्चो को अनाथ कर देते है आखिर वो भी तो किसी के माँ-बाप,भाई-बहन,या फिर प्यारे बच्चे होते हैं।
आज बाजारों में कही न कहीं केवल पानी को पीकर अपने जीवन को जीने वाली अनेकों प्रजाति के मछलियों के साथ-साथ बकरी और मुर्गे का बोलबाला दिखता है अब तो शहरों में इसके लिए किनारे एक अलग मंडी(बाजार) का स्थान निर्धारित कर दिया जा रहा है जहाँ इन बेजुबानों को बड़ी आसानी से बेजान कर दिया जाता है और अगर गलती से कोई सुद्ध शाकाहारी इनके मंडी के तरफ पहुँच जाये तो कुछ दिनों तक तबियत ख़राब होना तो मनो तय ही है! हाँ तो बात हो रही थी अदद सी ख़ुशी के मौकों पर इन बेजुबानों की आसानी से बली चढ़ा देने की,आखिर क्यों हम इन्शानों के लिए इनकी जान इतनी सस्ती होती है? जबकि इस धरती पर दिखने और जीवन यापन करने वाले हर एक प्राणी,जीव,जंतु सबको जन्म देने वाला भगवान ही है और उसने जब बिना किसी भेद-भाव के सिर्फ रूप रंग और आकारों को अलग अलग करते हुए सबके अन्दर के मांस के साथ साथ रगों में दौड़ने वाले खून जिससे सभी अपने बच्चों को सीच कर बड़ा करते है को एक सामान बनाने के साथ साथ इस धरती पर जीने के लिए सबको सामान अधिकार भी दिए है तो फिर ऐसे में इस धरती पर इन जानवरों की जान और मांस का ये हाल क्यों? आखिर हर माँ-बाप अपने बच्चे को अपने जान से ज्यादा प्यार करते हैं अब वो चाहे जानवर हों या फिर मनुष्य। जहाँ एक तरफ एक मुर्गा या बकरी जो अक्सर इन्शानों के ख़ुशी के मौके पर महफ़िल के अन्दर थाली की शान को बढ़ातें है वहीँ दूसरी तरफ वो भी तो उस दिन अपने परिवार से बिछड़ते होंगे और उस दिन से लेकर कई दिनों तक उनके परिवार वालों के साथ-साथ उनके मित्रगण की आँखे टक-टकी लगाये उनके आने के इंतजार में बैठी रहती होंगी सिर्फ इस आस में की उसके बीच रहने वाला आज अचानक कहाँ चला गया और कब तक आएगा? लेकिन ऐसे ही आस में बैठे कई दिनों को बिताते हुए उसे क्या पता रहता है की एक दिन अपनों से बिछड़ने का नंबर उसका खुद का आने वाला है! जरा सोचिये अपने प्रियजनों जैसे बेटे-बेटी,माँ-बाप,भाई-बहन व अन्य परिवार जनों के साथ-साथ किसी भी रिश्तेदार के तनिक भी जख्मी होने का समाचार सुनते ही हम इन्शानों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और फ़ौरन उसके स्वस्थ होने की कामना करना सुरु कर देते हैं आखिर यही हाल उन बेजुबानो का भी तो होता होगा जिसका एक सदस्य उसके बीच से जब गायब होता होगा और फिर वो बेजुबान अपने अंतिम शांश तक सिर्फ इसी बात का उत्तर ढूंढते रहते होंगे की आखिर उनका गुनाह क्या है जो उनके जान के साथ इन्शान हर वक्त जब चाहे निर्दयता के साथ पेश आता है।
आज बाजारों में कही न कहीं केवल पानी को पीकर अपने जीवन को जीने वाली अनेकों प्रजाति के मछलियों के साथ-साथ बकरी और मुर्गे का बोलबाला दिखता है अब तो शहरों में इसके लिए किनारे एक अलग मंडी(बाजार) का स्थान निर्धारित कर दिया जा रहा है जहाँ इन बेजुबानों को बड़ी आसानी से बेजान कर दिया जाता है और अगर गलती से कोई सुद्ध शाकाहारी इनके मंडी के तरफ पहुँच जाये तो कुछ दिनों तक तबियत ख़राब होना तो मनो तय ही है! हाँ तो बात हो रही थी अदद सी ख़ुशी के मौकों पर इन बेजुबानों की आसानी से बली चढ़ा देने की,आखिर क्यों हम इन्शानों के लिए इनकी जान इतनी सस्ती होती है? जबकि इस धरती पर दिखने और जीवन यापन करने वाले हर एक प्राणी,जीव,जंतु सबको जन्म देने वाला भगवान ही है और उसने जब बिना किसी भेद-भाव के सिर्फ रूप रंग और आकारों को अलग अलग करते हुए सबके अन्दर के मांस के साथ साथ रगों में दौड़ने वाले खून जिससे सभी अपने बच्चों को सीच कर बड़ा करते है को एक सामान बनाने के साथ साथ इस धरती पर जीने के लिए सबको सामान अधिकार भी दिए है तो फिर ऐसे में इस धरती पर इन जानवरों की जान और मांस का ये हाल क्यों? आखिर हर माँ-बाप अपने बच्चे को अपने जान से ज्यादा प्यार करते हैं अब वो चाहे जानवर हों या फिर मनुष्य। जहाँ एक तरफ एक मुर्गा या बकरी जो अक्सर इन्शानों के ख़ुशी के मौके पर महफ़िल के अन्दर थाली की शान को बढ़ातें है वहीँ दूसरी तरफ वो भी तो उस दिन अपने परिवार से बिछड़ते होंगे और उस दिन से लेकर कई दिनों तक उनके परिवार वालों के साथ-साथ उनके मित्रगण की आँखे टक-टकी लगाये उनके आने के इंतजार में बैठी रहती होंगी सिर्फ इस आस में की उसके बीच रहने वाला आज अचानक कहाँ चला गया और कब तक आएगा? लेकिन ऐसे ही आस में बैठे कई दिनों को बिताते हुए उसे क्या पता रहता है की एक दिन अपनों से बिछड़ने का नंबर उसका खुद का आने वाला है! जरा सोचिये अपने प्रियजनों जैसे बेटे-बेटी,माँ-बाप,भाई-बहन व अन्य परिवार जनों के साथ-साथ किसी भी रिश्तेदार के तनिक भी जख्मी होने का समाचार सुनते ही हम इन्शानों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और फ़ौरन उसके स्वस्थ होने की कामना करना सुरु कर देते हैं आखिर यही हाल उन बेजुबानो का भी तो होता होगा जिसका एक सदस्य उसके बीच से जब गायब होता होगा और फिर वो बेजुबान अपने अंतिम शांश तक सिर्फ इसी बात का उत्तर ढूंढते रहते होंगे की आखिर उनका गुनाह क्या है जो उनके जान के साथ इन्शान हर वक्त जब चाहे निर्दयता के साथ पेश आता है।
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