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Showing posts from September, 2017

तैंतीस कितने को कहते हैं...? (वर्तमान में हिंदी और हम)

वर्ष में एक बार हिंदी की याद और इसके लिए थोडा समय आखिर में हम सभी निकाल ही लेते हैं। दरअसल इस दिन इसकी चिंता में कहीं किसी मंच पर होते हैं कुछ वादे, तो कहीं किसी मंच से दे दी जाती हैं कुछ नसीहतें। और फिर। फिर क्या? फिर अगले वर्ष की इसके लिए निर्धारित तारिख के इंतजार में हम सभी मशगूल हो जाते हैं। ऐसे में मुझे एक घटना याद आती है जो हिंदी की वर्तमान दशा से परिचय कराती है। बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब मुझे एक प्राइवेट विद्यालय के वार्षिक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला था। विद्यालय इंग्लिश मीडियम जो एक गांव में स्थित है, शायद वहां अधिकाधिक आने जाने वाले हिंदी को ही समझते हों। समारोह में बैठे लगभग ज्यादातर लोग भी सम्भवतः ऐसे ही थे जो सिर्फ हिंदी ही जानते थे। कार्यक्रम चल रहा था एक एक कर अतिथिगण अपनी विद्वता का परिचय देते हुए उपस्थित लोगों और बच्चों को कुछ न कुछ सीख दिए जा रहे थे। एक प्रोफ़ेसर साहब जो डिग्री कालेज में इंग्लिश के हेड थे, उनकी भी वहां उपस्थित थी। कुछ देर बाद माईक से निकली मधुर आवाज़ ने उनको भी माईक की ओर आमंत्रित किया। पिछले सभी वक्ताओं की तरह उन्होंने भी अपना भाषण शुद्ध हि...