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Showing posts from October, 2017

इंसान निर्जीव है!

इंसान एक जीव है और कोई भी जीव सजीव होता है- ऐसा इसलिए क्योंकि वह चल सकता है, बोल सकता है, सोच सकता है और कुछ भी कर सकता है। ऐसा बचपन से सुनता आया हूँ। अबतक के जीवन यात्रा में जितने भी लोगों से साक्षत्कार हुआ और जिसके पास जितना अधिक ज्ञान मार्ग हैं, सभी ने अपनी पकड़ के अनुसार उस पर चलाते हुए यह बताने और समझाने में कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि जीव चाहे किसी भी रूप में हो वह सजीव ही होता है। आज भी अनेकों विद्वान अपने ज्ञानदीप से यह उजाला करने की लगातार कोशिश में लगे रहते हैं कि जीव के अनेक रूप हैं और सभी रूपों में वह सजीव ही होता है। ऐसे में यह कहना शायद गलत हो परंतु, पता नहीं क्यों दिमाग का एक छोटा सा कोना तमाम ज्ञानार्जन के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा कि जीव सजीव होता है, ऐसा वह मानने को तैयार ही नहीं। बार-बार उसे समझाने पर भी उसे यही लग रहा है कि जीव  तो सजीव है ही नहीं। हकीकत में यह भी निर्जीव है जैसे कमरे में रखी एक कुर्सी। और जिस प्रकार उस कुर्सी के सजीव होने का कोई सवाल नहीं, ठीक उसी प्रकार किसी भी जीव चाहे वह किसी भी रूप में हो उसके सजीव होने का भी कोई सवाल पैदा न...