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इंसान निर्जीव है!

इंसान एक जीव है और कोई भी जीव सजीव होता है- ऐसा इसलिए क्योंकि वह चल सकता है, बोल सकता है, सोच सकता है और कुछ भी कर सकता है। ऐसा बचपन से सुनता आया हूँ। अबतक के जीवन यात्रा में जितने भी लोगों से साक्षत्कार हुआ और जिसके पास जितना अधिक ज्ञान मार्ग हैं, सभी ने अपनी पकड़ के अनुसार उस पर चलाते हुए यह बताने और समझाने में कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि जीव चाहे किसी भी रूप में हो वह सजीव ही होता है। आज भी अनेकों विद्वान अपने ज्ञानदीप से यह उजाला करने की लगातार कोशिश में लगे रहते हैं कि जीव के अनेक रूप हैं और सभी रूपों में वह सजीव ही होता है। ऐसे में यह कहना शायद गलत हो परंतु, पता नहीं क्यों दिमाग का एक छोटा सा कोना तमाम ज्ञानार्जन के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा कि जीव सजीव होता है, ऐसा वह मानने को तैयार ही नहीं। बार-बार उसे समझाने पर भी उसे यही लग रहा है कि जीव  तो सजीव है ही नहीं। हकीकत में यह भी निर्जीव है जैसे कमरे में रखी एक कुर्सी। और जिस प्रकार उस कुर्सी के सजीव होने का कोई सवाल नहीं, ठीक उसी प्रकार किसी भी जीव चाहे वह किसी भी रूप में हो उसके सजीव होने का भी कोई सवाल पैदा नहीं होता।
अब आप कहेंगे कि, ऐसा कैसे हो सकता है? तो सबसे पहले सजीव और निर्जीव किसे कहते हैं? इस पर प्रकाश डालना यहां आवश्यक हो जाता है। सजीव शायद उसे कहते हैं जो स्वंय क्रियाशील हो, और निर्जीव उसे जो स्थिर यानि दूसरे पर निर्भर। यही होता है न, शायद...। अब यदि सजीव और निर्जीव यही है तो फिर आप स्वंय अपने दिमाग पर जोर डालिये और समझने की कोशिश कीजिये कि आप क्या हैं निर्जीव या सजीव? फिर भी यदि आप अपने आप को सजीव मानते हैं तो फिर क्या यह बता सकते हैं कि कैसे? उदहारण स्वरूप एक बौना जीव चाहे वह किसी भी रूप में हो- इंसान, पशु, पक्षी, कीड़ा कुछ भी हो जो अपनी बिरादरी से अलग दिखता है वह अपनी इच्छानुसार लम्बा क्यों नहीं हो सकता? यदि वो स्वंय क्रियाशील है तो उसे अपने आप को लम्बा कर लेना चाहिये और अपनी बिरादरी में सभी के समान हो जाना चाहिए। आखिर वो ऐसा चाहते हुए भी क्यों कुछ नहीं कर पाता।
यदि जीव स्वंय क्रियाशील है तो वह आईसीयू में क्यों जाता है? फिर आईसीयू में तड़पते किसी परिजन का दुःख हम या वह स्वंय तत्काल क्यों नहीं दूर कर लेता। यदि हम या वह मरीज स्वंय क्रियाशील हैं तो उसे या हमें तो तुरंत ऐसा कर लेना चाहिए ना। ऐसी किसी भी परिस्थिति में हम क्यों डॉक्टर और डॉक्टर क्यों दवा पर निर्भर हो जाता है। इतना ही नहीं यदि जीव स्वंय क्रियाशील है तो कोई भी जीव मरता ही क्यों है? कोई भी जीव अपने परिजन को अपने से शायद ही दूर होने देना चाहता हो, कम से कम मेडिकल के क्षेत्र से जुड़े लोग तो ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होने देते।
यदि जीव सजीव है तो हर किसी को अमीर होना चाहिए, गरीबी कोई क्यों झेल रहा है? क्यों नहीं हर इंसान को उसकी पसंद की नौकरी, पत्नी, बेटा, बेटी, घर, शहर यानि सब कुछ जो वह चाहता है मिल जाता है। जीव सजीव है सब कुछ कर सकता है तो यह सब हो जाना चाहिए।
संभवतः कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा जब आप जाने की तैयारी में होंगे पूरब और जाना पड़ा होगा पश्चिम। ऐसा क्यों? हमें तो पूरब ही जाना चाहिए था ना, क्योंकि हम सजीव हैं, स्वंय क्रियाशील हैं, खुद के दिमाग और शरीर के मालिक हैं।
यदि उपरोक्त किसी भी परिस्थिति में आपका जवाब यह है कि अपने हाथ में सब कुछ नहीं होता तो जब अपने हाथ में कुछ है ही नहीं, यानि जीव की निर्भरता भी कहीं और है तो फिर सजीव कैसे हुआ? वो तो कमरे में पड़ी ठीक उसी निर्जीव समझी जाने वाली उसी कुर्सी के सामान हुआ ना जिसे हम जब चाहें जैसे चाहें अपनी मर्ज़ी के अनुसार इधर उधर करते रहते हैं। फर्क बस इतना सा दिखता है कि हम जब किसी निर्जीव वस्तु को इधर उधर करते हैं तो स्वंय भी दिखाई देते हैं और जीव को जो इधर उधर करता है वो अदृश्य।

Comments

  1. बहुत अच्छा विचार

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  2. Life is a stage. इसलिये हर कोई अपना अपना किरदार निभाता है और फिर वह इस दुनिया को अलविदा कह देता है ।

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