तेज़ रफ़्तार से चल रही जीवन रूपी गाड़ी में से दस मिनट का समय निकाल पाना आसान होते हुए भी काफी मुश्किल सा नज़र आता है। वही पुरानी घिसी पिटी रोज की दिनचर्या...............सुबह-सुबह गायत्री मंत्र वाले अलार्म टोन के साथ एक खूबसूरत दिन की चाहत में आँखों का खुलना, जल्दी-जल्दी महत्वपूर्ण आवश्यक्ताओं को पूरा करते हुए समय से पांच मिनट पहले पहुचने का टार्गेट लिए निर्धारित समय पर ही आफिस में घुसना और फिर एक गिलास सादे पानी के साथ जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपने कार्य में लग जाना। कार्य के दौरान कभी बोस की सुनना तो कभी झल्लाए दिमाग से जूनियरों को सुनाना, फिर शाम को जल्दी घर पहुँचाने की मन में लालसा लिए लेट हो जाना और रात में देर से सोना..............। रविवार का दिन होने के कारण देर तक बिस्तर पर लेटे रवि के दिमाग में ये सारी बातें काफी देर से घूम रहीं थी। मन उबा तो सोचा कि क्यों न दो चार दिन की छुट्टी लेकर कहीं घूम आने का प्रोग्राम बनाया जाय। दिमाग और मन के साथ काफी मशक्कत करने और फिर बाद में दोनों को मनाते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि क्यों न शिवानंद के घर ही चलूँ, खर्च भी कम होगा और फिर उसके साथ साथ उसके घरवाले हमेशा आने का आग्रह भी करते हैं। लेकिन फिर मन हिचका और अचानक अपनी पिछली यात्रा के अनुभव को लेकर गहरी सोच में डूब गया।
दरअसल स्कूल के दिनों का उसका सबसे अभिन्न और भाई जैसा दोस्त है शिवानंद। पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वह नेता बन गया है। उसके पिता जी बड़े कद के नेता हैं, इसप्रकार राजनीति उसे विरासत में मिली है और इस समय वो तेजी से सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ रहा है। उसके पिता जी की अति व्यस्तता के कारण रवि की उनसे बहुत कम ही मुलाकात थी। उनके बारे में होने वाले प्रचार प्रसार से जितना रवि उन्हें जान पाया था कि वो देश की राजनीति में मजदूरों और गरीबों के मुद्दे को लेकर हमेशा सक्रीय रहते हैं। राजनीति में ऐसे मुद्दों को लेकर उनकी सक्रियता के बारे में शिवानन्द ने भी स्कूल के दिनों में कई बार उससे चर्चा किया था। जरूरतमंदों के लिए लड़ाई लड़ने की बात सुनकर रवि को बहुत अच्छा लगता था और ऐसे महान व्यक्तित्व के अनुभवों को जानने की लालसा हमेशा उसके मन में रहती थी।
रवि सोचता है कि, दो चार दिन नई जगह पर घूमने व शिवानंद के पिता से मिलने और मजदूरों के लिए उनके संघर्षों को जानने की लालसा लिए कैसे मैं कई वर्ष पहले अपने सबसे अभिन्न दोस्त को खबर कर निकल पड़ा था। उधर काफी पुराने दोस्त के आने की खबर सुन शिवानंद के भी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा था, और मुझे स्टेशन से लेने वो स्वंय आया था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि ट्रेन मात्र साढे चार घण्टे ही लेट थी जब मैं प्लेटफॉर्म पर उतरा। बाहर निकला तो आँखों ने देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे खड़ी नीले रंग की सफारी की ड्राइविंग सीट पर शिवानंद इस कदर सोने में ब्यस्त था, जैसे मानो उसने अपने छ: साल पुराने घोड़े को तंगी की वजह से आज ही बेचा हो। नजदीक पहुँच कर जैसे ही आवाज लगाया तो उसकी नींद टूटी और सामने मुझे पाकर उसकी काफी देर से बंद आँखे खुली की खुली रह गईं। फिर क्या था गाड़ी से नीचे उतर कर उसने कुछ महत्वपूर्ण गालियों के साथ मेरा स्वागत किया जो काफी सुखद अनुभूति थी।
चलती गाड़ी में हाल-चाल करते हम कब घर पहुंच गए पता ही नहीं चला। गेट के अन्दर घुसते ही कंपाउंड में घूमते बीसों नौकरों के साथ-साथ खुद उसके पिता ने मेरा इस प्रकार स्वागत किया जैसे मानो उनके घर कोई बहुत बड़ा आदमी पहुँच गया हो। धीरे-धीरे सबसे मिलने के बाद शिवानन्द ने एक नौकर को बोला कि वो मेरे लिए नहाने की व्यवस्था करे और नौकर ने जी साहब कहने के बाद मुझे खुले में बने नहान घर में पहुँचाया था जहाँ मै वर्षों बाद खुले में नहाने का आनंद लेते पुरे चालीस मिनट तक नहाता रहा। फिर कुछ देर बाद हम दोनों दोस्त कई वर्षों बाद एक साथ खाने के टेबल पर थे। रईसी ठाट हर तरफ दिख रही थी इसलिए इधर भी वही दिखा और सामने अनेकों ब्यंजनो को देखते ही मेरे आधे पेट ने तो जबाब दे दिया था, लेकिन आधे ने खाने के लिए हामी भरी और लगभग सैंतीस घंटे की यात्रा के बाद मै भूखा खाने पे दोस्त के साथ लग गया। हम खाने में मशगूल रहे कि कुछ देर बाद शिवानंद बोला यार तू तो कुछ ले ही नही रहा, दबा कर खा यार बहुत दिनों के बाद तो साथ खाना खा रहे है हम लोग। इधर मेरा पेट जवाब दे रहा था सो मैंने कुछ और लेने के उसके आग्रह को ठुकरा दिया तभी, उसने मेरे से पीछे देखने का इशारा किया। उसकी बात सुन जैसे ही मैंने अपने गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया कि एक मीठा सा थप्पड़ मेरे गालों पे आके चिपक गया और साथ ही एक जानी पहचानी आवाज ने कानों में दस्तक दी................क्यों बच्चू अभी ये गुलाब जामुन और जूस कौन लेगा?
अरे रिंकी तू अभी यहीं है, बाप रे मै तो गया................मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा। और फिर मैं शिवानंद से अचानक ही बोल पड़ा यार तुने पहले क्यों नहीं बताया कि ये मैडम अभी यहीं हैं। इसकी शादी क्यों नहीं कर देते तुम लोग। ये तो आज फिर से जबरदस्ती खिला खिला कर मार डालने का प्लान बना ही ली होगी....................और पता नहीँ क्या क्या बड़बड़ाता रहा। वो बिचारा हँसते हुए कहने लगा कि यार रोज तो मुझे मारती ही है आज तेरी बारी है भाई। बहुत दिनों के बाद तेरा नंबर आया है ना। दरअसल रिंकी उसकी छोटी बहन है, लेकिन खाना खिलाते समय वो पुरे परिवार में हमेशा से ही सबसे बड़े जैसा व्यव्हार करती है। फिर क्या था, भर पेट खाना खाने के बाद लाडली बहन चार गुलाब जामुन लेकर सामने खड़ी रही और उसे रोकने की मेरी लाख कोशिशें हमेशा की तरह फेल होती रहीं तथा सामने बैठा शिवानन्द बस यही कहता रहा की भाई देख तेरे और उसके बीच मै कुछ नहीं कह सकता। तू तो आया है चार दिन के लिए और अगर मै कुछ बोला तो मुझे उसका पनिशमेंट इसके शादी कर अपने घर जाने तक मिलता रहेगा ।इससे बेहतर है कि मै चुप ही रहूँ। अंततोगत्वा मुझे उसके हाथ का प्लेट खाली करना ही पड़ा था।
जबरदस्ती और प्यार भरे खाने को खाने के बाद मुझसे बैठा नही जा रहा था, इसलिए शिवानन्द से मैंने आराम करने की इच्छा जताई और वो तुरंत ही कंपाउंड में एक किनारे मेहमानों के ठहरने के लिए बने आलीशान कमरे की तरफ मुझे लेकर चल पड़ा। अंदर का क्या नजारा था, घुसते ही मैं अपने आप को आसमानी लाईटों के बीच तैरता पाया। ठीक बीचोबीच में रखे सोफे पर शिवानंद ने बैठने का इसारा किया और बोला आज तू थका है आराम कर, कल कहीं घूमने निकलेंगे। पिताजी भी न जाने कबतक आएंगे। तुम तो जानते ही हो उनकी व्यस्तता, कल मिल लेना। इधर काफी थके होने की वज़ह से मैंने भी आराम करना ही बेहतर समझा। शिवानंद ने बगल में खड़े नौकर को हिदायत दी कि देखना दोस्त को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो और मुझे शुभरात्रि बोल अपने सोने के लिए चला गया।
कुछ देर बाद नौकर ने निवेदन के साथ पूछा साहब टीवी देखेंगे, चालू कर देता हूँ। मैंने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाया और एक गिलास पानी देकर उसे सोने के लिए बोला। बाहर मौसम ने बारिश की शुरुआत हवा के साथ कर दिया था इस लिए कमरे के अंदर का वातावरण मुझे कुछ ठंढा महशूश हुआ और मैंने एसी को बंद करना उचित समझा, खिड़की खोली और शुद्ध वातावरण को कमरे में प्रवेश के लिए आमंत्रित किया। इतने में उस आदमी ने पानी का गिलास सामने टेबल पर रखकर किसी भी जरुरत पर आवाज लगाने की विनती के साथ जाने के लिए मेरी सहमति लेकर खुद आराम करने चला गया। कुछ देर ही बीते होंगे कि बाहर हो रही मुशलाधार बारिश से बचते बचाते कमरे में नींद ने प्रवेश कर मुझपर अपना प्रभाव दिखाना शूरू कर दिया और मैं टीवी और बल्ब का स्विच आफ कर सोने को तैयार तो हो गया, लेकिन सो नही पाया। हुआ यूँ कि अचानक मेरे कानों को कुछ आवाज सुनाई दी। नई जगह होने के कारण मैं कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन ह्रदय ने अपनी गति को कुछ जरूर बढ़ा दिया। खैर इससे ध्यान हटाकर मैंने नींद पर ही एकाग्रता बनानी चाही लेकिन हो रही हलचल की निरंतरता ने नींद को कहीं दूर और कुछ दिनों के लिए तो बहुत ही दूर कर दिया, और फिर क्या आगे की घटनाक्रम की वज़ह से मैं पूरी रात जगता ही रह गया।
मन बेचैनी में घिरा तो मैंने पानी पीया और कमरे को फिर से नीले रंग की रोशनी में नहाने के लिए आदेशित कर यह सुनिश्चित करना चाहा कि ये आवाज़ कहाँ से आ रही है? कमरा खाली दिखा और काफी देर बाद भी कुछ स्पष्ट नही हो सका परंतु आवाज़ ने कानों में निरंतरता जारी रखी। रात के लगभग एक बज चुके थे। जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी कानों में आने वाली आवाज भी बढ़ती ही जा रही थी। मन बेचैनी से घिरता चला गया, सोचा उस नौकर को आवाज़ दूँ लेकिन फिर दिल ने कहा छोड़ो किसी को सोने में क्यों परेशान किया जाय और मैं अपनेआपको शांत करने के मकसद से कमरे में टहलने लगा। लेकिन ये क्या...............टहलते टहलते खिड़की की तरफ गया तो मुझे उसी आदमी की आवाज सुनाई दी जिसे मैं परेशान नही करना चाह रहा था। फिर मुझे लगा इधर ही कुछ बात है और मैं खिडकी से ही चिपक कर खड़ा हुआ कि कुछ ही देर में सब कुछ स्पष्ट हो गया।
दरअसल, मेहमान की सेवा में हर पल मौजूद रहने की मकसद से कमरे की दीवार के सहारे ही टीन का एक कमरा बना था जिसमे वो नौकर अपने परिवार के साथ रहता था और हर वक्त मेहमान नवाजी में मौजूद रहता था। उस समय हुआ कुछ यूँ था कि चल रही तेज़ हवा के कारण उस कमरे का छज्जा थोडा खिसक गया था, और मूसलाधार बारिश का पानी दीवार के सहारे उस कमरे में एक दम सीधे जा रहा था जिससे बचने की कोशिश में कमरे से आवाज निकल रही थी। स्थिति यह थी कि वो मजदूर परिवार एक तरफ उस भयानक मौसम से बचने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी तरफ अपनी किस्मत को कोसता नजर आ रहा था।
इधर मैं काफी देर तक खिडकी के पास खड़ा रहा और फिर एक गिलास पानी के साथ सोफे पर बैठकर यह सोचने लगा कि वो गरीब परिवार कैसे अपनी रात बिताएगा। पानी देते वक्त उस नौकर से हुई छोटी सी मुलाकात में उसने अपने बारे में बताया था कि, उसके जीवन में उसके अलावा एक बेटा, दो शादी योग्य बेटियां और उसकी धर्म पत्नी है जो कुछ दिनों से तेज बुखार से पीड़ित है। बेचैनी और बढ़ी तो मन के अन्दर से एक आवाज़ आयी कि, क्यों न जाकर उस परिवार को इसी कमरे में बुला लाऊँ। कम से कम बिचारों की रात कट जायेगी और यह विश्वास था कि सुबह तो उनका कमरा ठीक हो ही जायेगा। इस सुझाव के लिए दिल ने दिमाग को धन्यवाद दिया और कुछ कदम बढे भी कि अचानक दिमाग ने एक सवाल खड़ा कर दिया कि इतनी रात को उसके घर जाकर उसे पूरे परिवार सहित यहाँ बुलाना उचित होगा या नहीं, किसी ने या फिर खुद उस नौकर ने मेरे इस कदम का गलत अर्थ निकाल लिया तो.................। कदम कुछ देर जरूर ठिठके लेकिन, फिर उस परिवार की सहायता को बिना किसी झिझक के आगे की ओर बढ़े ही थे कि अचानक यह एहसास हुआ कि मौसम ने अपने स्वभाव को शांत कर लिया है और बारिश के साथ हवा ने इस विपरीत परिस्थिति में तांडव मचाने के बाद खुद ही उस परिवार पर रहम कर दिया है।
मैं फिर एक गिलास पानी को खाली कर इस तसल्ली के साथ सोफे पर बैठ गया कि चलो अब जैसे तैसे आज की रात तो यह परिवार काट ही लेगा और सुबह शिवानंद से जोर के साथ यह प्रस्ताव रखूँगा कि अपने कर्मचारियों के रहने के लिए क्यों नहीं उचित प्रबंध करवा देते हो, और फिर कहीं दूर जा चुकी नींद का इंतजार करता रहा। उस गरीब परिवार की दिक्कतों के बारे में सोचते सोचते नींद तो बिचारी नही आयी, लेकिन सुबह के छः कब बज गए पता ही नही चला और शिवानंद ने कमरे में दस्तक दे दी। कमरे में घुसते ही उसने आवाज लगाई यार मैं तुझे जगाने आया हूँ और तू न जाने कब से जगा है। कब खुली है तेरी नींद? वैसे नींद तो खूब आई होगी ना थक जो गया था तू.............? ऐसे उसने तमाम सवाल पूछे और मैंने उसके सभी सवालों का जवाब एक ही लाईन में देते हुए कहा कि तू जगने की बात कर रहा है ये पूछ कि मैं सोया कब हूँ।
इसपर उसने झट से एक और सवाल दागा क्यों रात को तो तुझे जल्दी ही नींद आ रही थी फिर ऐसे क्यों कह रहा है। मेरे उदास मन ने फिर वही जवाब दिया..............नही यार मैं पूरी रात सो नही पाया हूँ। ये मेहमानो की देख रेख के लिए जो तेरा आदमी है न, इसके परिवार की वज़ह से मैं पूरी रात जगा ही रह गया। इतना सुनते ही उसने अपने नौकर को गुस्से से आवाज लगाई................लेकिन मैंने उसे बुलाने को मना किया और बताया कि इसमें इनकी कोई गलती नही है। दरअसल इनकी दिक्कत की वज़ह से मैं सो नही पाया। रात की घटना से उसे अवगत कराया कि पूरी रात बिचारे किस तरह परेशान थे। इनके लिए अच्छी ब्यवस्था क्यों नही कर देते तुम लोग। मेरी बातों को सुनकर धीमी आवाज में कुछ देर बाद वो बोला यार पिता जी से कई बार कहता तो हूँ लेकिन वो इस मुद्दे को हमेशा टाल जाते है। फिर कुछ देर बाद खुद उदास मन से उसने कहा, छोड इसे तू फटाफट नाश्ते के लिए तैयार हो जा।
मन में तसल्ली हुई चलो ये समझ गया अब इन बिचारों का कुछ भला हो जायेगा और मैं अपने नित्य कर्म में व्यस्त हो गया। कुछ देर बाद हम लोग एक बार फिर खाने की टेबल पर थे कि पीछे से मेरे कन्धों पर अपने हाथों को रखते हुए शिवानंद के पिता ने कहा कैसे हो बेटा? हमने सुना है तुम रात को सो नही पाए। कोई बात नही, मेहमाननवाज़ी में किसी की गुस्ताखी माफ़ नही की जायेगी। मैंने उस नौकर का पांच दिन का पगार काटने का आदेश दे दिया है, आखिर उसने मेहमान के सोने में दिक्कत पैदा की है................। उसके पिता की बातों पर मैंने कुछ कहना चाहा तबतक वो तेजी से आगे बढ़ गए। रात की घटना के बाद सुबह यह सुनकर मन एक बार फिर बेचैन हुआ और सामने एक सवाल घूमने लगा कि जिसका अपना सबसे पुराना नौकर जब इस कदर जाग कर और परेशान होकर रात बिता रहा है और उसके प्रति उसके मालिक का ब्यवहार ऐसा है तो वो कैसे और किस प्रकार जिले के सभी गरीबों और मजदूरों के लिए लड़ने की बात करता है………………………………जैसी बातों को सोचते हुए मन के अन्दर से उसके पिता से मिल के बात करने और इंटरव्यू लेने वाले ख्याल को बाहर करते हुए वहां रुकने की बजाय लौटने का प्लान बना कर अपने दोस्त शिवानन्द और प्यारी बहन रिंकी के लाख रोकने की कोशिशों को नाकाम करते हुए अपने घर उन दोनों को आमंत्रित कर शिवानंद के सामने हाथ जोड़कर विनती किया था कि यदि उनके लिए मकान नही बनवा सकते तो उनकी पांच दिन की पगार मत कटने देना भाई, और उस मजदुर परिवार को देखते हुए अपने घर को निकल पड़ा था।
नोट:- कहानी के पात्र व घटनाएं सभी काल्पनिक हैं, इसका किसी व्यक्ति या किसी के जीवन से कोई सम्बन्ध नही है।
दरअसल स्कूल के दिनों का उसका सबसे अभिन्न और भाई जैसा दोस्त है शिवानंद। पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वह नेता बन गया है। उसके पिता जी बड़े कद के नेता हैं, इसप्रकार राजनीति उसे विरासत में मिली है और इस समय वो तेजी से सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ रहा है। उसके पिता जी की अति व्यस्तता के कारण रवि की उनसे बहुत कम ही मुलाकात थी। उनके बारे में होने वाले प्रचार प्रसार से जितना रवि उन्हें जान पाया था कि वो देश की राजनीति में मजदूरों और गरीबों के मुद्दे को लेकर हमेशा सक्रीय रहते हैं। राजनीति में ऐसे मुद्दों को लेकर उनकी सक्रियता के बारे में शिवानन्द ने भी स्कूल के दिनों में कई बार उससे चर्चा किया था। जरूरतमंदों के लिए लड़ाई लड़ने की बात सुनकर रवि को बहुत अच्छा लगता था और ऐसे महान व्यक्तित्व के अनुभवों को जानने की लालसा हमेशा उसके मन में रहती थी।
रवि सोचता है कि, दो चार दिन नई जगह पर घूमने व शिवानंद के पिता से मिलने और मजदूरों के लिए उनके संघर्षों को जानने की लालसा लिए कैसे मैं कई वर्ष पहले अपने सबसे अभिन्न दोस्त को खबर कर निकल पड़ा था। उधर काफी पुराने दोस्त के आने की खबर सुन शिवानंद के भी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा था, और मुझे स्टेशन से लेने वो स्वंय आया था। मुझे अच्छी तरह से याद है कि ट्रेन मात्र साढे चार घण्टे ही लेट थी जब मैं प्लेटफॉर्म पर उतरा। बाहर निकला तो आँखों ने देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे खड़ी नीले रंग की सफारी की ड्राइविंग सीट पर शिवानंद इस कदर सोने में ब्यस्त था, जैसे मानो उसने अपने छ: साल पुराने घोड़े को तंगी की वजह से आज ही बेचा हो। नजदीक पहुँच कर जैसे ही आवाज लगाया तो उसकी नींद टूटी और सामने मुझे पाकर उसकी काफी देर से बंद आँखे खुली की खुली रह गईं। फिर क्या था गाड़ी से नीचे उतर कर उसने कुछ महत्वपूर्ण गालियों के साथ मेरा स्वागत किया जो काफी सुखद अनुभूति थी।
चलती गाड़ी में हाल-चाल करते हम कब घर पहुंच गए पता ही नहीं चला। गेट के अन्दर घुसते ही कंपाउंड में घूमते बीसों नौकरों के साथ-साथ खुद उसके पिता ने मेरा इस प्रकार स्वागत किया जैसे मानो उनके घर कोई बहुत बड़ा आदमी पहुँच गया हो। धीरे-धीरे सबसे मिलने के बाद शिवानन्द ने एक नौकर को बोला कि वो मेरे लिए नहाने की व्यवस्था करे और नौकर ने जी साहब कहने के बाद मुझे खुले में बने नहान घर में पहुँचाया था जहाँ मै वर्षों बाद खुले में नहाने का आनंद लेते पुरे चालीस मिनट तक नहाता रहा। फिर कुछ देर बाद हम दोनों दोस्त कई वर्षों बाद एक साथ खाने के टेबल पर थे। रईसी ठाट हर तरफ दिख रही थी इसलिए इधर भी वही दिखा और सामने अनेकों ब्यंजनो को देखते ही मेरे आधे पेट ने तो जबाब दे दिया था, लेकिन आधे ने खाने के लिए हामी भरी और लगभग सैंतीस घंटे की यात्रा के बाद मै भूखा खाने पे दोस्त के साथ लग गया। हम खाने में मशगूल रहे कि कुछ देर बाद शिवानंद बोला यार तू तो कुछ ले ही नही रहा, दबा कर खा यार बहुत दिनों के बाद तो साथ खाना खा रहे है हम लोग। इधर मेरा पेट जवाब दे रहा था सो मैंने कुछ और लेने के उसके आग्रह को ठुकरा दिया तभी, उसने मेरे से पीछे देखने का इशारा किया। उसकी बात सुन जैसे ही मैंने अपने गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया कि एक मीठा सा थप्पड़ मेरे गालों पे आके चिपक गया और साथ ही एक जानी पहचानी आवाज ने कानों में दस्तक दी................क्यों बच्चू अभी ये गुलाब जामुन और जूस कौन लेगा?
अरे रिंकी तू अभी यहीं है, बाप रे मै तो गया................मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा। और फिर मैं शिवानंद से अचानक ही बोल पड़ा यार तुने पहले क्यों नहीं बताया कि ये मैडम अभी यहीं हैं। इसकी शादी क्यों नहीं कर देते तुम लोग। ये तो आज फिर से जबरदस्ती खिला खिला कर मार डालने का प्लान बना ही ली होगी....................और पता नहीँ क्या क्या बड़बड़ाता रहा। वो बिचारा हँसते हुए कहने लगा कि यार रोज तो मुझे मारती ही है आज तेरी बारी है भाई। बहुत दिनों के बाद तेरा नंबर आया है ना। दरअसल रिंकी उसकी छोटी बहन है, लेकिन खाना खिलाते समय वो पुरे परिवार में हमेशा से ही सबसे बड़े जैसा व्यव्हार करती है। फिर क्या था, भर पेट खाना खाने के बाद लाडली बहन चार गुलाब जामुन लेकर सामने खड़ी रही और उसे रोकने की मेरी लाख कोशिशें हमेशा की तरह फेल होती रहीं तथा सामने बैठा शिवानन्द बस यही कहता रहा की भाई देख तेरे और उसके बीच मै कुछ नहीं कह सकता। तू तो आया है चार दिन के लिए और अगर मै कुछ बोला तो मुझे उसका पनिशमेंट इसके शादी कर अपने घर जाने तक मिलता रहेगा ।इससे बेहतर है कि मै चुप ही रहूँ। अंततोगत्वा मुझे उसके हाथ का प्लेट खाली करना ही पड़ा था।
जबरदस्ती और प्यार भरे खाने को खाने के बाद मुझसे बैठा नही जा रहा था, इसलिए शिवानन्द से मैंने आराम करने की इच्छा जताई और वो तुरंत ही कंपाउंड में एक किनारे मेहमानों के ठहरने के लिए बने आलीशान कमरे की तरफ मुझे लेकर चल पड़ा। अंदर का क्या नजारा था, घुसते ही मैं अपने आप को आसमानी लाईटों के बीच तैरता पाया। ठीक बीचोबीच में रखे सोफे पर शिवानंद ने बैठने का इसारा किया और बोला आज तू थका है आराम कर, कल कहीं घूमने निकलेंगे। पिताजी भी न जाने कबतक आएंगे। तुम तो जानते ही हो उनकी व्यस्तता, कल मिल लेना। इधर काफी थके होने की वज़ह से मैंने भी आराम करना ही बेहतर समझा। शिवानंद ने बगल में खड़े नौकर को हिदायत दी कि देखना दोस्त को किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो और मुझे शुभरात्रि बोल अपने सोने के लिए चला गया।
कुछ देर बाद नौकर ने निवेदन के साथ पूछा साहब टीवी देखेंगे, चालू कर देता हूँ। मैंने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाया और एक गिलास पानी देकर उसे सोने के लिए बोला। बाहर मौसम ने बारिश की शुरुआत हवा के साथ कर दिया था इस लिए कमरे के अंदर का वातावरण मुझे कुछ ठंढा महशूश हुआ और मैंने एसी को बंद करना उचित समझा, खिड़की खोली और शुद्ध वातावरण को कमरे में प्रवेश के लिए आमंत्रित किया। इतने में उस आदमी ने पानी का गिलास सामने टेबल पर रखकर किसी भी जरुरत पर आवाज लगाने की विनती के साथ जाने के लिए मेरी सहमति लेकर खुद आराम करने चला गया। कुछ देर ही बीते होंगे कि बाहर हो रही मुशलाधार बारिश से बचते बचाते कमरे में नींद ने प्रवेश कर मुझपर अपना प्रभाव दिखाना शूरू कर दिया और मैं टीवी और बल्ब का स्विच आफ कर सोने को तैयार तो हो गया, लेकिन सो नही पाया। हुआ यूँ कि अचानक मेरे कानों को कुछ आवाज सुनाई दी। नई जगह होने के कारण मैं कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन ह्रदय ने अपनी गति को कुछ जरूर बढ़ा दिया। खैर इससे ध्यान हटाकर मैंने नींद पर ही एकाग्रता बनानी चाही लेकिन हो रही हलचल की निरंतरता ने नींद को कहीं दूर और कुछ दिनों के लिए तो बहुत ही दूर कर दिया, और फिर क्या आगे की घटनाक्रम की वज़ह से मैं पूरी रात जगता ही रह गया।
मन बेचैनी में घिरा तो मैंने पानी पीया और कमरे को फिर से नीले रंग की रोशनी में नहाने के लिए आदेशित कर यह सुनिश्चित करना चाहा कि ये आवाज़ कहाँ से आ रही है? कमरा खाली दिखा और काफी देर बाद भी कुछ स्पष्ट नही हो सका परंतु आवाज़ ने कानों में निरंतरता जारी रखी। रात के लगभग एक बज चुके थे। जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी कानों में आने वाली आवाज भी बढ़ती ही जा रही थी। मन बेचैनी से घिरता चला गया, सोचा उस नौकर को आवाज़ दूँ लेकिन फिर दिल ने कहा छोड़ो किसी को सोने में क्यों परेशान किया जाय और मैं अपनेआपको शांत करने के मकसद से कमरे में टहलने लगा। लेकिन ये क्या...............टहलते टहलते खिड़की की तरफ गया तो मुझे उसी आदमी की आवाज सुनाई दी जिसे मैं परेशान नही करना चाह रहा था। फिर मुझे लगा इधर ही कुछ बात है और मैं खिडकी से ही चिपक कर खड़ा हुआ कि कुछ ही देर में सब कुछ स्पष्ट हो गया।
दरअसल, मेहमान की सेवा में हर पल मौजूद रहने की मकसद से कमरे की दीवार के सहारे ही टीन का एक कमरा बना था जिसमे वो नौकर अपने परिवार के साथ रहता था और हर वक्त मेहमान नवाजी में मौजूद रहता था। उस समय हुआ कुछ यूँ था कि चल रही तेज़ हवा के कारण उस कमरे का छज्जा थोडा खिसक गया था, और मूसलाधार बारिश का पानी दीवार के सहारे उस कमरे में एक दम सीधे जा रहा था जिससे बचने की कोशिश में कमरे से आवाज निकल रही थी। स्थिति यह थी कि वो मजदूर परिवार एक तरफ उस भयानक मौसम से बचने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी तरफ अपनी किस्मत को कोसता नजर आ रहा था।
इधर मैं काफी देर तक खिडकी के पास खड़ा रहा और फिर एक गिलास पानी के साथ सोफे पर बैठकर यह सोचने लगा कि वो गरीब परिवार कैसे अपनी रात बिताएगा। पानी देते वक्त उस नौकर से हुई छोटी सी मुलाकात में उसने अपने बारे में बताया था कि, उसके जीवन में उसके अलावा एक बेटा, दो शादी योग्य बेटियां और उसकी धर्म पत्नी है जो कुछ दिनों से तेज बुखार से पीड़ित है। बेचैनी और बढ़ी तो मन के अन्दर से एक आवाज़ आयी कि, क्यों न जाकर उस परिवार को इसी कमरे में बुला लाऊँ। कम से कम बिचारों की रात कट जायेगी और यह विश्वास था कि सुबह तो उनका कमरा ठीक हो ही जायेगा। इस सुझाव के लिए दिल ने दिमाग को धन्यवाद दिया और कुछ कदम बढे भी कि अचानक दिमाग ने एक सवाल खड़ा कर दिया कि इतनी रात को उसके घर जाकर उसे पूरे परिवार सहित यहाँ बुलाना उचित होगा या नहीं, किसी ने या फिर खुद उस नौकर ने मेरे इस कदम का गलत अर्थ निकाल लिया तो.................। कदम कुछ देर जरूर ठिठके लेकिन, फिर उस परिवार की सहायता को बिना किसी झिझक के आगे की ओर बढ़े ही थे कि अचानक यह एहसास हुआ कि मौसम ने अपने स्वभाव को शांत कर लिया है और बारिश के साथ हवा ने इस विपरीत परिस्थिति में तांडव मचाने के बाद खुद ही उस परिवार पर रहम कर दिया है।
मैं फिर एक गिलास पानी को खाली कर इस तसल्ली के साथ सोफे पर बैठ गया कि चलो अब जैसे तैसे आज की रात तो यह परिवार काट ही लेगा और सुबह शिवानंद से जोर के साथ यह प्रस्ताव रखूँगा कि अपने कर्मचारियों के रहने के लिए क्यों नहीं उचित प्रबंध करवा देते हो, और फिर कहीं दूर जा चुकी नींद का इंतजार करता रहा। उस गरीब परिवार की दिक्कतों के बारे में सोचते सोचते नींद तो बिचारी नही आयी, लेकिन सुबह के छः कब बज गए पता ही नही चला और शिवानंद ने कमरे में दस्तक दे दी। कमरे में घुसते ही उसने आवाज लगाई यार मैं तुझे जगाने आया हूँ और तू न जाने कब से जगा है। कब खुली है तेरी नींद? वैसे नींद तो खूब आई होगी ना थक जो गया था तू.............? ऐसे उसने तमाम सवाल पूछे और मैंने उसके सभी सवालों का जवाब एक ही लाईन में देते हुए कहा कि तू जगने की बात कर रहा है ये पूछ कि मैं सोया कब हूँ।
इसपर उसने झट से एक और सवाल दागा क्यों रात को तो तुझे जल्दी ही नींद आ रही थी फिर ऐसे क्यों कह रहा है। मेरे उदास मन ने फिर वही जवाब दिया..............नही यार मैं पूरी रात सो नही पाया हूँ। ये मेहमानो की देख रेख के लिए जो तेरा आदमी है न, इसके परिवार की वज़ह से मैं पूरी रात जगा ही रह गया। इतना सुनते ही उसने अपने नौकर को गुस्से से आवाज लगाई................लेकिन मैंने उसे बुलाने को मना किया और बताया कि इसमें इनकी कोई गलती नही है। दरअसल इनकी दिक्कत की वज़ह से मैं सो नही पाया। रात की घटना से उसे अवगत कराया कि पूरी रात बिचारे किस तरह परेशान थे। इनके लिए अच्छी ब्यवस्था क्यों नही कर देते तुम लोग। मेरी बातों को सुनकर धीमी आवाज में कुछ देर बाद वो बोला यार पिता जी से कई बार कहता तो हूँ लेकिन वो इस मुद्दे को हमेशा टाल जाते है। फिर कुछ देर बाद खुद उदास मन से उसने कहा, छोड इसे तू फटाफट नाश्ते के लिए तैयार हो जा।
मन में तसल्ली हुई चलो ये समझ गया अब इन बिचारों का कुछ भला हो जायेगा और मैं अपने नित्य कर्म में व्यस्त हो गया। कुछ देर बाद हम लोग एक बार फिर खाने की टेबल पर थे कि पीछे से मेरे कन्धों पर अपने हाथों को रखते हुए शिवानंद के पिता ने कहा कैसे हो बेटा? हमने सुना है तुम रात को सो नही पाए। कोई बात नही, मेहमाननवाज़ी में किसी की गुस्ताखी माफ़ नही की जायेगी। मैंने उस नौकर का पांच दिन का पगार काटने का आदेश दे दिया है, आखिर उसने मेहमान के सोने में दिक्कत पैदा की है................। उसके पिता की बातों पर मैंने कुछ कहना चाहा तबतक वो तेजी से आगे बढ़ गए। रात की घटना के बाद सुबह यह सुनकर मन एक बार फिर बेचैन हुआ और सामने एक सवाल घूमने लगा कि जिसका अपना सबसे पुराना नौकर जब इस कदर जाग कर और परेशान होकर रात बिता रहा है और उसके प्रति उसके मालिक का ब्यवहार ऐसा है तो वो कैसे और किस प्रकार जिले के सभी गरीबों और मजदूरों के लिए लड़ने की बात करता है………………………………जैसी बातों को सोचते हुए मन के अन्दर से उसके पिता से मिल के बात करने और इंटरव्यू लेने वाले ख्याल को बाहर करते हुए वहां रुकने की बजाय लौटने का प्लान बना कर अपने दोस्त शिवानन्द और प्यारी बहन रिंकी के लाख रोकने की कोशिशों को नाकाम करते हुए अपने घर उन दोनों को आमंत्रित कर शिवानंद के सामने हाथ जोड़कर विनती किया था कि यदि उनके लिए मकान नही बनवा सकते तो उनकी पांच दिन की पगार मत कटने देना भाई, और उस मजदुर परिवार को देखते हुए अपने घर को निकल पड़ा था।
नोट:- कहानी के पात्र व घटनाएं सभी काल्पनिक हैं, इसका किसी व्यक्ति या किसी के जीवन से कोई सम्बन्ध नही है।
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