विश्व के विभिन्न प्रमुख देशों के बीच भारत ने भी अपने आपको आज तकनीक के क्षेत्र में उपलब्धियों के दिवार को खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। बहुत ही तेज़ी के साथ तकनीक के क्षेत्र में तरक्की की है हमने और दुनिया को दिखा दिया है कि, हम हर हाल में किसी भी ताकत को टक्कर देने में सक्षम हैं। आज भारत ने परमाणु ताकत से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में अविष्कार कर अपने को मजबूत करने की भरपूर कोशिश करते सफलता को अपने गले से लगाया है। लिहाजा वर्तमान कुछ ऐसा है कि, आज से कुछ दशकों पहले भारत को जिन देशों ने अपने चंगुल में रखा था आज वो भी इसके तकनिकी ताकत के आगे घबराता हुआ नज़र आता है। आज देखा जा सकता है कि, किस तरह नए अविष्कारों के बदौलत ही भारत दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्रों की सूचि में अपना नाम दर्ज कराने में सफल भी हुआ है। वर्तमान ऐसा है कि, हर रोज हम भी एक नए परीक्षण के साथ दुनिया से रूबरू होते हैं।
लेकिन, बावजूद इसके दुनिया में हो रहे इन रोज के विभिन्न महत्वपूर्ण अविष्कारों में जहाँ एक तरफ देश तो मजबूत दिखते हैं, जबकि वहीँ दूसरी तरफ ऐसा लगता है जैसे इंसान कमजोर होता जा रहा है। किसी भी तकनीक और इंसान के बीच कितना सामंजस्य और ताल मेल है शायद यह किसी भी तरक्की और मजबूती के लिये विशेष महत्वपूर्ण होना चाहिए। जी हाँ, तकनीक ने कहीं ना कहीं किसी एक वर्ग को बहुत ऊपर तो किसी एक वर्ग को बहुत नीचे छोड़ने में भी मदद किया है। आज जहाँ इसने(तकनीक ने) कंप्यूटर जैसी मशीन को समय और धन बचाने के लिए दिया है वहीं एक बड़े वर्ग को बेरोजगारी भी इसी मशीन के द्वारा मिली है। इनफोर्मेसन ही क्यों कृषि को देख लीजिए वर्तमान कुछ ऐसा दिखेगा कि, खेती के लिए भी हम तकनीक का बढ़ चढ़ कर उपयोग करते हैं। आज हम बैलों की जगह ट्रैक्टरों और कुंओ की जगह पम्पिंसेट का इस्तेमाल जोर सोर से करते हैं। यह अलग की बात है कि अब पता नहीं क्यों इतनी सुबिधा के बावजूद वो पहले वाली उपज नहीं मिलती। अगर अति आधुनिक तकनीकों के बल पर उपज को बढ़ाने में हम सफल हो भी जाते हैं तो वो पहले वाली ताकत अनाजों के अन्दर नहीं मिलती। आज किसान तकनीक के बलबूते पर जहाँ चाहे वहां बोरिंग करवा कर पम्पिंसेट के माध्यम से धरती के निचे से जबरदस्ती पानी तो ऊपर निकाल लाता है लेकिन फशलों की प्यास नहीं बुझा पाता और हरयाली देने में नाकाम हो जाता है। आज किसान फशलों में बाजारों में मौजूद विभिन्न प्रकार के कीटनाशक दवाईयों को छिड़क कर ख़ुशी से झूम तो उठता है लेकिन, कीड़ों को फशलों पर आक्रमण करने से नहीं रोक पाता। आज हम अपनी पूर्ण संतुष्टि के लिए विभिन्न उच्च कोटि के खादों का प्रयोग तो करते है लेकिन अनाजो में वो मिठास नहीं पैदा कर पाते। कहीं ना कहीं आज भी हमें वो बैल मिस करते हैं जो थोडा सा भूसा और चारा खाकर अपने मालिक के डंडों के इशारे पर जलती धूप में मालिक के साथ खेतों की मिटटी को अपनी बेश कीमती खुरों से मुलायम बनाते थे और तब किसी किसान को तेल की बढ़ रही कीमतों की चिंता भी नहीं सताती............। शायद उनके उन खुरों में इतनी ताकत थी जो हमें ये ट्रैक्टर के पहिये से नहीं मिलती। शायद इनके गोबर में वो मिठास थी जो आज की ट्रैक्टर के धुएं और इन खादों से अनाजो में नहीं पैदा हो पाती। शायद इनके गोबर के जले राख में वो ताकत थी जो आज के इस अंग्रेजी कीटनाशक में नहीं मिलती।
इन बढ़ती तकनीकों को अपनाने के होड़ ने तो मानो बैलों के ऊपर ऐसा प्रहार कर डाला कि, जो बैल कुछ वर्ष या दशक पहले किसानों की शान हुआ करते थे वो बैल आज हर किसान के मुह से गाली सुनने के आदि हो चुके हैं। जमाना कहाँ से कहाँ चला गया, किसी ज़माने में जब किसी किसान की गाय द्वारा बछड़े को जन्म दिया जाता था तो उस घर में इस प्रकार खुशियाँ मनायीं जाती थी मानों उस परिवार द्वारा जैसे किसी लडाई में जीत दर्ज की गयी हो। जबकि, ठीक इसके बिपरीत आज बछड़े के जन्म पे लोग भौहें चढ़ा लेते हैं। ऐसे ही इस तकनीक ने सिर्फ बैलों पर ही नहीं बल्कि मनुष्य के जीवन पर अनन्य प्रकार से बहुत प्रभाव छोड़ा है। पहले जहाँ मनुष्य कम सुविधा वाले ज़माने में पचास किलोमीटर की दूरी पैदल चल कर बिना थकान के तय करते थे और अपने आपको को हमेशा तरोताजा महशूस करते थे वहीँ आज बीस किलोमीटर की दूरी आलिशान ऐ०सी० गाड़ी के अन्दर बैठ कर तय करने के बाद भी इंसान थकान को गले से लगाते अनुभव करता है। पहले जहाँ चोट लगने पर सिर्फ मिटटी लगा देने से चोट ठीक हो जाया करते थे वहीँ अब हजारों की दवाइयों के बाद भी शरीर में कमजोरी बनी रहती है। पहले जहाँ अस्सी के उम्र में भी किसी को ब्लड प्रेसर और सुगर जैसे नामों का पता नहीं होता था वहीँ आज इस अति आधुनिक तकनीक से भरे ज़माने में एक बच्चा भी इसके घेरे में घिरा नजर आता है। पहले जहाँ मिटटी से बने चूल्हों पर महिलाओं को रोटी बनाने और हाथ से कपडा धोने के बावजूद अधिकतर बीमारी उनके पास आने से घबराती थी और बच्चे भी साधारण तरीके से पैदा हो जाया करते थे, वहीँ आज गैस,फ्रिज,वाशिंग मशीन जैसे जामने में डिलीवरी के मामलों में कहीं कहीं ही बिना आपरेशन का बच्चा पैदा हुआ सुनने को मिलता है। पहले जहाँ उस मद्धम दिए की रौशनी में ही पल बढ़कर उच्च कोटि के विद्वान पैदा हो जाया करते थे जिनकी एक एक बातें आज भी उपदेशात्मक हैं और देश की तरक्की के लिए रोशनी का काम करती हैं, वहीँ आज जगमगाती रोशनी में डूबे कमरे शायद इंसान के अन्दर वो संस्कार नहीं भर पाते।
अब ऐसे में क्या कहा जाय। इंसान या तो तकनीक के दौर में अपनी उन पुरानी चीजों या परम्पराओं को भुला देना चाहता है या उसे अपनाना ही नहीं। लेकिन, शायद आज भी इस तकनीक के दौर में अगर एक छोटी सी जगह उन पुरानी ब्यव्स्थाओं को दी जाय, उन्हें भुलाया ना जाय तो शायद कुछ बीमारियों पर अंकुश लग जाय। समाज और संस्कारी हो जाय। आज इंसान को अपनी ताकत को और मजबूत करने के लिए तकनीक के क्षेत्र में जितना ही तरक्की करना आवश्यक है, उतना ही पुरानी ब्यव्स्थाओं के साथ सामंजस्य और ताल मेल बैठा कर इसके साथ चलना भी शायद बेहद महत्वपूर्ण है ........................!
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