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Showing posts from December, 2018

जश्न की रात- बेदर्द निगाहें, बच गई तो फिर मिलूंगी...

चलो पिछले वर्ष तो बच गए हम, अब आगे...............। आगे क्या, ईश्वर की मर्जी। इस बेरहम दौर में कब और किस दिन किसका नम्बर आ जाये कौन जाने? इसे अपनी लम्बी उम्र मानें या फिर ईश्वर की असीम कृपा जिसकी बदौलत एक वर्ष और हम सभी एक दूसरे से मिल पाए। अरी पगली, प्रभु की कृपा ही तो है कि जीवन में अबतक किसी मांस प्रिय सज्जन की निगाह हमारे ऊपर नहीं पड़ी और पूरे वर्ष अनेकों मौकों पर चहुँओर घूमती कातिलाना निगाहों से बचते रहे हम। वैसे एक दिन तो किसी न किसी के थाली की शोभा बढ़ाने के लिए उसका आहार बनना ही है हमें फिर, घबराना क्या.............? सही कहते हो जी,  अब कब कौन अपने वर्ष की शुरुआत हमारे अंत से करे कौन जाने? आज और अबतक गला बचा है तो इसलिए, आज ही हमारे तरफ से तुम सभी और इस धरती पर विचरण करने वाले असंख्य जीवों को नए वर्ष की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। हाँ, आने वाली जश्न की रात और बेदर्द निगाहों से बच पाई तो फिर मिलेंगे...........। कुछ ऐसी ही बातें शायद उस कुनबे के मालिक और मालकिन आपस में कर रहे थे जिन्होंने बच्चों, मित्रों और अपने रिश्तेदारों सहित पिछले 31 दिसम्बर की रात घबराहट के साथ बम...

...कि वो, किस रूप में अब हो गए

(धर्मेश तिवारी) सोचता हूँ ये कि वो, किस रूप में अब हो गए क्या कहे थे-किया क्या, थे वादे कुछ जो खो गए होंगे वो दुनिया की खातिर, इक मुसाफिर की तरह पर कर दिया वो काम जो, घर में नजर से खो गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए क्या बात थी, इक समय था, हर ओर चर्चे में रहे हर बात में हैं आज भी पर, दूर कितना हो गए हैं अडिग सुनता हूँ पर, दिखते मगन-मद-चूर वो जिस मिट्टी में चल के बढ़े, उसमें जहर को बो दिए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए उनको बताऊं किस कदर, जनता ने पीया है जहर अरे फैसले दर फैसले, जनता ने जीया है कहर सब दर्द को पीते रहे हम, खूबसूरत कल मिले पर है नतीजा खूब क्या, हम एक थे और बंट गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए हर घाव जो भरने थे छोड़ा, नए कुछ और मिल गए जो बातें करते थे कभी, लगता जुबां अब सिल गए मूर्ख है जनता सुना, पर वो भी कान खोलें और सुनें कि आंसुओं से आमजन के, कइयों के मुकद्दर मिट गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए x