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जश्न की रात- बेदर्द निगाहें, बच गई तो फिर मिलूंगी...

चलो पिछले वर्ष तो बच गए हम, अब आगे...............। आगे क्या, ईश्वर की मर्जी। इस बेरहम दौर में कब और किस दिन किसका नम्बर आ जाये कौन जाने? इसे अपनी लम्बी उम्र मानें या फिर ईश्वर की असीम कृपा जिसकी बदौलत एक वर्ष और हम सभी एक दूसरे से मिल पाए। अरी पगली, प्रभु की कृपा ही तो है कि जीवन में अबतक किसी मांस प्रिय सज्जन की निगाह हमारे ऊपर नहीं पड़ी और पूरे वर्ष अनेकों मौकों पर चहुँओर घूमती कातिलाना निगाहों से बचते रहे हम। वैसे एक दिन तो किसी न किसी के थाली की शोभा बढ़ाने के लिए उसका आहार बनना ही है हमें फिर, घबराना क्या.............? सही कहते हो जी, अब कब कौन अपने वर्ष की शुरुआत हमारे अंत से करे कौन जाने? आज और अबतक गला बचा है तो इसलिए, आज ही हमारे तरफ से तुम सभी और इस धरती पर विचरण करने वाले असंख्य जीवों को नए वर्ष की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। हाँ, आने वाली जश्न की रात और बेदर्द निगाहों से बच पाई तो फिर मिलेंगे...........।
कुछ ऐसी ही बातें शायद उस कुनबे के मालिक और मालकिन आपस में कर रहे थे जिन्होंने बच्चों, मित्रों और अपने रिश्तेदारों सहित पिछले 31 दिसम्बर की रात घबराहट के साथ बमुश्किल पार करके नए वर्ष का सूरज देखा होगा। नटखट और मासूम इधर-उधर कूदते-खेलते अपने प्यारे बच्चों को प्यास भरी नजरों से देखते व उनपर हाथ फेरकर अपनी ममता को उड़ेलते हुए आपस में बात करते वक्त उस जोड़े के चेहरे से घबराहट के साथ एक सुकून साफ झलक रहा था, जो यह बताने के लिए काफी था कि हर इंसान की भांति यह कुनबा भी पिछले 1 जनवरी को हैप्पी न्यू ईयर बोल कर गर्म जोशी के साथ एक दूसरे के गले मिला होगा और आज फिर पूरी उम्मीद के साथ अगले वर्ष की तैयारी में है। लेकिन यह क्या? एक तरफ तो यहां इस कुनबे में एक जनवरी को उगने वाले सूरज के दीदार की ललक थी, तो दूसरी तरफ 31 दिसम्बर की जश्न की रात को सोच कर ही अचानक पूरा परिवार सहमा हुआ सा प्रतीत होता था। ऐसी स्थिति में पूरे वर्ष अपने को बचते-बचाते वर्ष के अंतिम क्षण में  इंसानों के लिए इन बेजुबानों के हलक से उनके घबराहट भरे शब्द मानो बाहर ही नहीं आ पा रहे थे। बावजूद इसके, वर्ष के अंतिम क्षणों में यह कुनबा एक दूसरे को समझाने और उनका मनोबल बढ़ाने में कोई कसर छोड़ता नहीं दिखाई पड़ रहा था।
दरअसल हर वर्ष की भांति एक तरफ फिर वर्तमान वर्ष यानी 2019 अपने अंतिम चरण में है तो दूसरी तरफ, आगंतुक वर्ष 2020 की तैयारियां पूरे जोरों पर हैं। और हो भी क्यों न? अब इसमें महज कुछ गिने चुने दिन ही तो शेष बचें हैं। ऐसे में जिस गति से इस वर्ष का अंतिम क्षण  अपने अंत की ओर तेजी से बढ़ रहा है ठीक उसकी दुगनी गति से नए वर्ष के आगमन को लेकर सबकी धड़कने तेज होती जा रही हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि, नए वर्ष के स्वागत की तैयारी में अधिकतर जीव कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। सभी एक-दूसरे को उसके पहले बधाई और शुभकामनाएं देने की तैयारी में अग्रसर तो रहते ही हैं, पुराने वर्ष की उथल-पुथल भरी राह के बाद मिलने वाले नए रास्ते पर हर कोई अपने तरीके और गर्मजोशी के साथ उस पर कदम रखने और चलने को आतुर होता है।
हकीकत यह भी है कि, इस भिन्नता भरे समाज में सबके अपने तरीके हैं। कोई अपनी खुशी में किसी की जान से खिलवाड़ करने से नहीं हिचकता तो कोई, किसी की जान को बचा कर अपने लिए खुशी तलाश लेता है। एक तरफ कोई अपनो से हैपी न्यू ईयर बोलता है मिली हुई उस खुशी के साथ जो उसने किसी जीव को उसके अपनो के बीच से बिछड़ा कर अर्जित किया है तो वहीं दूसरी तरफ कोई, किसी जीव को दाना खिलाने और उसके सहलाने से मिली संतुष्टि के साथ उन्हीं से हैपी न्यू ईयर बोल कर नए वर्ष की शुरुआत करता है। ऐसे में इस मौके पर इस कुनबे की मीटिंग और हरकतें देख कर सहसा ही ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जानवर भी एक दूसरे से मोह और प्यार शायद उतना ही रखते हैं जितना कि, हम इंसान अपने और अपनों के लिए। अब यदि ऐसा है तो, जितना कष्ट हमें चोट लगने पर या हमारे किसी अपने के हमसे बिछड़ने पर होता है उतना ही शायद उन्हें भी, क्यों...?

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