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अदभुत सम्मोहन

एक यात्रा...
दिन के अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे सूर्यदेव की मानो कमजोर हो चुकी किरणें अगले दिन एक बार फिर से मिलने के वादे के साथ विदा लेते हुए सबके दर्शन को आतुर चन्द्रमा का स्वागत करने को बेताब दिख रही थीं कि अचानक ट्रेन के रुकने का एहसास हुआ और प्लेटफार्म की गूंजती आवाज कानों में दस्तक देनें लगी। जगह जानने की उत्सुकता जागी और नजरें चारो तरफ तैरने लगीं, लेकिन अफसोस कि दूर-दूर तक प्लेटफार्म पर नेम प्लेट नजर नहीं आया, इसलिए स्थान स्पष्ट नहीं हो सका कि हम कहां पर हैं। खैर कुछ देर भी नहीं बीते होंगे कि ट्रेन के पहिए घूमने लगे और मैं जगह जानने की उत्सुक्ता लिए प्लेटफार्म की ओर खिड़की के बगल में बैठे परिवार से पूछ बैठा कि अभी कौन सा स्टेशन निकला है और इस समय हम कहां पर हैं?  दूसरी ओर से चंद पलों के बाद कमजोर हो चुकी आवाज में दम भरने का एहशास कराती मानो मिर्ची का तड़का लगा हो कुछ ऐसे ही अंदाज में एक आवाज मेरे कानों तक पहुंची मानिकपुर। यह लड़खड़ाती लेकिन कड़क आवाज दरअसल उस बूढ़ी मां की थी जो एक महिला शायद उनकी बहु हो तथा एक ऐसे नटखट लगभग दो वर्ष के बच्चे शायद उनका पोता हो के साथ सफर कर रहीं थीं जो निश्च्छल भाव से सबके पास जाने को आतुर दिख रहा था। चूंकि आजकल के धोखाधड़ी के इस दौर में लोगों का एक-दूसरे पर विश्वास खत्म ही होता जा रहा है, शायद यही वजह रही होगी कि वो अपने पोते के इस व्यवहार ( सबके पास जाने को आतुर ) से डर रहीं थीं कि उसके ऐसा करने से कहीं अगल-बगल वालों से बात-चीत न शुरु हो जाए वह बूढ़ी माता काफी खिन्न दिख रहीं थीं। ...............................खैर कहां उलझ गया जगह पता करना था सो हो गया आगे बढ़ते हैं.............................लेकिन मन में फिर सवाल उत्पन्न हुआ और प्रश्न पूछने की समस्या से ग्रसित मै तुरंत अगला सवाल दाग बैठा कि ये (मानिकपुर) कहां पड़ता है माता जी? कि तमतमायी आवाज फिर से मेरे कानों में तैर गयी उ0प्र0 का अंतिम स्टेशन है और यहां से शुरु होता है मध्य प्रदेश। और इस उत्तर ने यह स्पष्ट किया कि अब हम मध्य प्रदेश में प्रवेश कर चुके थे।
यानी काफी तेज घूमते ट्रेन के पहिए हमें उस पहाड़ों से घिरी खूबसूरत धरती के करीब पहंचा चुके थे जिन्हे नजदीक से देखना एक अलग ही अनुभव होता। फिर क्या था सुन्दर नजारा देखने की उत्सुकता जागी और नजरें खिड़की की तरफ दौड़ीं, लेकिन आंखें पहाडों से घिरी उस धरती का खूबसूरत नजारा कुछ स्पष्ट रुप से देख पातीं कि इसके पहले ही रात के अंधेरे ने अपनी छटा बिखेरना शुरु कर दिया था। उस स्वर्ग समान धरती को नजदीक से देखने, जानने और समझने की लालसा लिए मै अंधेरे में कुछ देख नहीं पा रहा था, कि इतने में वह बूढ़ी मां फिर दिख गयीं, और उन्हे देखते ही मेरा मन इस मंथन में लग गया कि आज हम-सभी के बीच यह कैसी सिथत उत्पन्न हो गइ है, किस प्रकार लोगों का विश्वास एक दूसरे से उठ गया है, लोग शायद एक दूसरे से बात करने के बजाय चुप रहना ज्यादा फायदेमंद समझने लगे हैं। धोखा देने वाले फरेबियों ने मानों सामाजिक मिठास को ही खत्म कर दिया है। कुछ ऐसे ही विचार मन में उथल-पुथल की सिथति पैदा किए हुए थे कि अंधेरे को चीरते ट्रेन के पहिए हमें उस जनपद में प्रवेश करा चुके थे जो सीमेन्ट के लिए मशहूर है, जी हां मेरी ट्रेन सतना स्टेशन पर खड़ी थी।
अरे यहां तक आ गया और आप लोगों को ये तो बताना ही भूल ही गया कि मै जा कहां रहा था, दरअसल पहाड़ पर बैठी मां मैहर वाली ने जो मुझे बुलाया था, सो उन्ही के बुलावे पर उनके दर्शन की लालसा लिए मैं निकला था। ....................हां तो कहां था मैं स्टेशन सतना पर.....................खैर यहां तक पहुंच अब इतना अंदाजा तो लग ही चुका था कि बस कुछ ही दूरी पर पहांड़ पर बैठी मां शारदा का मंदिर है, लेकिन स्पष्ट करने के लिए प्रश्नों के भण्डार में कैद से परेशान हो रहा एक और सवाल बाहर आ गया और इसके जबाव ने आश्वस्थ किया कि यहां से लगभग तीस किमी दूरी पर मैहर स्टेशन है जहां मां शारदा निवास करती हैं। चलिए तो यानी अब हम मैहर के करीब हैं..................................। हां आगे बढ़ने से पहले यहां एक महत्वपूर्ण बात मैं आपको जरुर बताना चाहुंगा कि यदि कभी मां आपको बुलाएं और आपका जाने का प्रोग्राम बने तो आप इस अदभुत नजारे को अपने आंखों में कैद जरुर कीजिएगा जी हां दरअसल सतना से मैहर के लिए ट्रेन जैसे ही आगे की ओर धीरे-धीरे रफतार पकड़ती है पहाड़ की उंचाइ पर सिथत मां शारदा मैहर वाली का मंदिर खिड़की से सीधा संबघ बनाना शुरु कर देता है फिर इस सिथति में सहज ही ऐसा प्रतीत होता है कि मानों ट्रेन अपने से न चल रही हो बलिक पहाड़ पर विराजमान मां स्वयं आपको अपनी तरफ खींचे जा रही हों तथा भक्तों को दर्शन देने के लिए मंदिर के बाहर बैठ कर इन्तजार कर रही हों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,। आंखों को सुकून देता यह नजारा अदभुत था। इसी बीच कब मेरी ट्रेन मैहर स्टेशन पर खड़ी हो गइ पता ही नहीं चला। स्टेशन से बाहर निकल जैसे ही मैने घड़ी पर नजर दौड़ायी उसने रात के 11 बजने का संकेत किया और मैने बिना समय गवांए काफी देर से साथ घूम रहे आटो रिक्शा वाले से मंदिर की तरफ कूच करने का निवेदन किया। अब चूकि मैं जिस रिक्शे में बैठा था उसकी स्पीड कुछ ऐसी थी कि कुछ ही समय में मैंने अपने आप को मंदिर के पास नीचे एक यात्री निवास के सामने खड़ा पाया। यहां पर यात्री निवास कुछ इस तरीके से बने हुए हैं जहां ठहरने पर आपको उचित सुविधा का अनुभव होगा। आपको बताते चलें कि पहाड़ो की सुंदरता से घिरा यह शहर अनेकों होटलों से भरा हुआ है बावजूद इसके धर्मशालाओं की यहां कोइ कमी नहीं दिखती ऐसे में अपने बजट के हिसाब से कहीं भी ठहरा जा सकता है बसरते होटल खाली हों, चूकिं मैने जितने होटलों पर ठहरने की कोशिश की निराशा के साथ यही सुनने को मिला कि जगह नहीं है साहब.........। खैर एक यात्री निवास ने मुझे शरण दिया और मै अपने कमरे में पहुंच थकान मिटाने की नीयत से फ्रेश हो आराम करना ज्यादा बेहतर समझा, लेकिन थकान नाम की तो कोइ चीज ही नजर नहीं आ रही थी दरअसल रास्ते भर कैद किये थकान ने इस पावन धरती पर पहुंचते ही मानों अपने आप को उर्जा में परिवर्तित कर दिया हो और मै अपने कमरे में पूरी रात सोने की चेष्टा करता ही रह गया लेकिन मां की झलक को बेताब आंखों ने नींद के आने वाले रास्ते पर मानों पहरेदार खड़ा कर रखा हो जिसने सुबह तक नींद को करीब भटकने तक नहीं दिया। ऐसे में क्या करता सो टहलता उस यात्री निवास के इंचार्ज महोदय के पास पहुंच गया सोचा नींद तो आ नहीं रही सो चलो इंचार्ज महोदय के नींद को भी भंग किया जाय खैर वो महोदय जाग कर मुस्तैदी से अपनी डयूटी कर रहे थे। उनके पास वाली सीट पर बैठ मैं उनसे वहां के बारे में जानने की कोशिश में लग गया। बातों बातों में पता चला कि सुबह 6 बजे से मंदिर की ओर जाने वाला द्वार खुल जाता है और इसके साथ ही सीढ़ीयों पर श्रद्धालुओं की एक लम्बी कतार दिखना प्रारम्भ हो जाती है खैर घबड़ाने की कोइ बात नहीं बीच में सिर्फ 1 घंटे के लिए द्वार बंद होता है और फिर शाम के आरती तक श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है।
अभी कुछ और जानने को मिलता कि अगले दिन सूर्यदेव ने दर्शन दे दिए और इसके साथ ही मां का जयकारा कानों में दस्तक देने लगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,यानी काफी इन्तजार के बाद वो घड़ी करीब आ गइ थी जब मै फ्रेश होकर मंदिर की ओर कदम बढ़ाने को बिल्कुल तैयार था। यहां मंदिर की प्रथम सीढ़ी से लगभग 50 कदम पहले रंग बिरंगी चुनरियों से सजी करीब 50सों दुकाने आपका इंतजार करती दिख जाएंगी जहां फुल माला से लेकर सिंदुर मिष्ठान तक आपको आसानी से मिल जाएंगे। लोगों ने बताया कि प्रसाद यहीं से लेना बेहतर होगा क्योंकि उपर प्रांगण में फोटो स्टूडियो के अलावा कोइ दुकान नहीं दिखती जहां महज आपका दस मिनट लेकर रंग बिरंगे और आकर्षक तथा मनचाहे फोटो सस्ते दामों में उपलब्ध होते हैं। पता चला कि उपर मां के मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं पहला सीढ़ी जिसके लिए यह स्थान मशहूर है, दूसरा पिच रोड जो पहाड़ का परिक्रमा लगाते हुए उपर की ओर पहुंचाता है और तीसरा रोप वे जिसका मात्र 70 रुपये का टिकट आपको महज 5 मिनट में मां के मंदिर के करीब पहुंचा देगा। लेकिन यदि आप सीढि़यां चढ़ने में सक्षम हों तो बेहतर यही होगा कि इसी रास्ते को चुनिए और हिम्मत के साथ पहली सीढ़ी को चूम बिना उपर देखे माता का स्मरण करते आगे बढ़ते रहिए। आपको विश्वास नहीं होगा मां की असीम अनुकंपा ऐसी है कि पैरों को आपको नहीं बलिक स्वयं पैर आपको उपर की ओर खींचते चले जाएंगे। वैसे सीढि़यों पर बीच बीच में आराम करने का उचित प्रबन्ध मंदिर समिति के द्वारा दिखता है जहां आप कुछ देर बैठ कर पुन: उर्जा का आभास कर सकते हैं। लेकिन बेहतर यही होगा कि बिना समय गवांये आप जितना जल्दी हो सके उपर मां के दरबार में दस्तक दे दीजिए क्योंकि स्वयं मां अपने हर भक्तों को दर्शन देते हुए आपके इन्तजार में बैठी होती है।
पहांड़ के शीर्ष पर सिथत अदभुत सम्मोहित करते कैम्पस में सबसे उपर मंदिर में विराजमान मां शारदा के उज्जवल स्वरुप को देखते जैसे ही शान्ती का आभास हो बिना समय गवांए आगे बढ़ जाइए क्योंकि आपके पीछे एक लंबा हुजूम मां के दर्शन को आतुर रहता है। आगे बढि़ए और पीछे के रास्ते नीचे आकर काल भैरव जी का दर्शन करना मत भूलिए। यहां आपको बता दें कि इस वक्त तक चारो तरफ दूर-दूर तक फैले प्राकृतिक नजारे आपको अपनी तरफ आकर्षित करना शुरु कर देते हैं, लेकिन फिलहाल इन्हे थोड़ा इग्नोर कर सीधे गुफा की ओर जाना ज्यादा बेहतर होगा जहां आपको दिब्य ज्योजि का दर्शन मिलेगा। फिर क्या दर्शन कर बाहर निकलिए और बिना बिलंब किए अपने मन को आजाद छोड़ दिजिए क्योंकि इसी धरती पर शायद स्वर्ग सा एक सुन्दर नजारा न जाने कब से आपका इन्तजार कर रहा होता है। यहां मेरा एक दावा यह है कि आप जिधर नजरों को घुमाने की कोशिश करेंगे प्रकृति रुपी समुद्र में अपने आपको गोते खाते ही पाएंगे। इतना ही नहीं साथ में न जाने कब से चिल्ला रहे फोटोग्राफरों से अपने साथ कुछ दृश्यों को कैद जरुर करवाएं ऐसा भविष्य के लिए बेहतर साबित हो सकता है। दरअसल खिंचवाए हुए यही दृश्य हमेशा इस नजारे का अनुभव कराते रहते हैं। यहां पर आपको एक बात और बताना चाहुंगा जो मै भूल रहा था और वो ये कि यहां जाने से पहले कुछ अतिरिक्त समय अवश्य ही आपके पास होना चाहिए क्योंकि प्रकित का नजारा सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाता मां के आशीर्वाद से प्रकृति को अपने अंदर कैद किए यहां की भूमि के पास और भी ऐसी जगहे हैं जो महज 20 किमी के गोलाकार एरिया में आपको देखने को मिल जाएंगी। हां यदि आपके पास ज्यादा समय हो तो और भी तीर्थ स्थल यहां से काफी पास में ही पड़ते हैं जहां पहुंचकर जीवन में शांती का अनुभव किया जा सकता है। चुंकि समयाभाव के चलते मै दूर जाने का प्रोग्राम नहीं बना सका और पास के ही कुछ जगहों पर पहुंच सका। जैसा कि मैने आपको बताया था कि इस धरती ने सौंदर्य को अपने अंदर कैद कर रखा है सो आइए चलते-चलते ऐसी ही एक जगह से आपका परिचय कराता हूं जो मां के मंदिर से महज लगभग दस किमी की दूरी पर सिथत है, यानि रामपुर। इस जगह की खास बात यह है जैसा कि यहां के लोगों ने बताया कि यहां कइ दशक पहले श्री नीलकण्ठ जी महाराज जी ने तपस्या किया था। वाक्ययी इस स्थान पर पहुंच कर मन को इस बात का एहशास हुआ कि अपने आप में प्राकृतिक सुन्दरता को समेटे यह स्थल अपने आगंतुकों का बेसब्री से इन्तजार कर रहा होता है। लेकिन एक बात और यहां का दृश्य काफी अजीब सा दिखता है क्योंकि जैसे ही आप यहां पहुंचेंगे आपको सहसा ही प्रतीत होगा कि यहां प्रकृति ने ऐसा क्या जादू कर रखा है कि लिखने वाले ने यहां पहुचने की अपील कर डाली लेकिन थोड़ा सब्र कर अन्दर की ओर प्रस्थान करिए, कुछ ही देर में आपको इस बात का आभास होगा कि यह छोटा सा रामपुर आपके लिए क्या छुपा कर बैठा है। जी हां रामपुर के उस मंदिर में जहां श्री नीलकंठ जी महाराज जी ने तपस्या किया था उसमें मात्र दो मिनट ही बिताने पर एक अजीब जी शान्ती की अनुभूति होती है, और बाहर...................बाहर तो पूछिए ही मत सिर्फ नजरों को चारो ओर तैरने का आदेश दे दिजिए फिर देखिए कैसे कुछ ही देर में नजरें आपको एक सुन्दर नजारें का एहशास कराती हैं। नजारे देख कुछ इस प्रकार का अनुभव होता है कि मानो धरती ने अपने आपको सिर्फ आपके लिए ही सजाया हो............................. वो सनसनाती आवाज के साथ गिरते झरने मानो ट्रांजिस्टर चल रहा हो............................काफी दूर तक दिखती एक विशाल खाइ को देख आप दंग रह जाएंगे, सुन्दर नजारे ऐसा प्रतीत कराते हैं कि इस समय सबसे उपर आप ही खड़े हों। शुद्ध वातावरण के आभास के साथ चिडि़यों की चहचहाहट के बीच वहां से काफी दूर तक एक मनोरम दृश्य दिखना आरम्भ होता है जहां से नजरें हटने का नाम आसानी से नहीं लेतीं............................। हां एक बात और यहां आपको यह विश्वास करना ही होगा कि झरने में बह रहे उस जल की क्या गजब शुद्धता है, ग्रहण करने पर ऐसा लगता है जैसे मिनरल किऐ हुए पानी से भी साफ, गजब मिठास का अनुभव कराते हैं झरने। कुछ समय यहां बिताइए और फिर आगे बढि़ए तथा बिना रुके सीधे पहुंच जाइए पन्नी खोह जो शारदा माता के मंदिर से लगभग तीन या चार किमी की दूरी पर सिथत है।
आपको बता दूं यहां पहुचने पर सहसा ही ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सुन्दरता का धरती के इस जगह पर एक छत्र राज हो, विशाल पहाड़ों के रास्ते काफी तेज रफतार से आपके तरफ आते झरने मानों आपके कदम चूमने को बेताब दिखते हैं, आप जितना देर भी वहां बिताएं उस दौरान अजीबो गरीब सा पक्षियों का शोरगुल मानो आपसे कुछ कहने को या शायद स्वयं अपना परिचय देने की कोशिश में दिखता है। वो अलग प्रजाति के पुष्प जो अपनी सुन्दरता की खुशबू में आपको नहलाने को हर पल आतुर दिखते हैं। हां यहां फिर मेरा एक दावा है कि ऐसे बिहंगम दृश्य देख आपको मनमोहित होने से कोइ रोक नहीं सकता। सिर्फ यही नहीं सुन्दरता को समेटे इस धरती पर और भी ऐसे स्थल हैं-जैसे मां शारदा के मंदिर के ठीक नीचे ही आल्हा का आखाड़ा, कुछ ही दूरी पर सिथत कोयला मंदिर, तथा अनेक तमाम स्थल जहां जाने पर एक अजीब और अलग सि शान्ती का अनुभव होता है।
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