कहीं इसका उत्तर यह तो नहीं कि, हम गैर जिम्मेदार हो चुके हैं। जी हाँ, गैर जिम्मेदार। अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी। गैर जिम्मेदार शायद इसलिए क्योंकि, हमारी जीवनशैली कैसी होनी चाहिए जो खुद और दूसरों के लिए उचित, सहज और शुलभ हो इसे शायद हम भूल चुके हैं। शरीर और समाज कैसे और हमारे किस प्रकार के कृत्य से स्वच्छ रहे, यह शायद हम भूल चुके हैं। आवश्यक और गैर आवश्यक में क्या फर्क होता है इसे शायद हम भूल चुके हैं। शायद हम भूल चुके हैं कि, दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए जिससे घर के सभी सदस्यों के सुख और दुख को बांटा जा सके।
सोचिए, हम अपनी जीवनशैली कैसा बना चुके हैं जिसमें पर्याप्त समय होते हुए भी उन क्षणों के लिए समय की कमी दिखती है जिससे जीवन में ऊर्जा का संचार होता है। हमारे पूर्वज तो बिना आधुनिक सुविधाओं के भी परिवार से लेकर रिश्तेदार तक हमेशा कनेक्ट रहते थे और आज हम आधुनिकता के जाल में कैसे फंसे हैं कि, हमारे पास न घर में सबको देने के लिए पर्याप्त समय है और न ही बाहर। हाथों में हर पल मोबाईल तो है लेकिन, महज एक या दो को छोड़कर बाकी के रिश्तेदारों से कब बात हुई है शायद ही आपको याद हो। कैसी यात्रा है यह जिसमें रोज साथ रहना है लेकिन, समय इस कदर नहीं है कि जन्मदिन की बधाई देना भी अब शायद हम फोन से पसंद करने लगे हैं।
क्या आधुनिक युग है और कैसी जीवनशैली? अपने पूर्वजों की जीवन यात्रा को देखने की कोशिश करिए तो पता चलता है कि, जीवन को कैसे जीते थे वो लोग। दिमाग को थोड़ा सा पीछे के दृश्य देखने का आदेश दीजिए............मेरा दावा है कि जैसे ही आपका दिमाग आपको आपके पूर्वजों के जीवन की ओर लेकर बढ़ेगा सहज ही आप यह अनुभव करेंगे कि, जीवनशैली कैसी होनी चाहिए जिसमें शरीर निरोगी हो, चहुओर खुशी हो और समाज स्वस्थ तथा संस्कारी हो........... यह बात शायद ही उनसे बेहतर कोई जानता हो। उनका जीवन सहज, सरल और स्वच्छता के साथ स्वस्थ रहता था यह कैसे और क्यों था? शायद इस प्रश्न का उत्तर आसानी से तब समझ पाएंगे जब आप पीछे मुड़ेंगे। तब आप देख पाएंगे कि, किस प्रकार उनका अपना बर्तन हुआ करता था। वो जहां गए साथ जाता था। उसी से खाना, पीना और और फिर उसी से नहाना। कई पूजनीय जनों को तो मैं व्यक्तिगत जनता हूँ जो अपनी 80-90 वर्ष की अवस्था में भी घर हो चाहे बाहर स्वयं के हाथों बना खाना ही ग्रहण करते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कि, मैं यहां यह सब क्यों चर्चा कर रहा हूँ। जवाब यह है कि, जब वर्तमान चहुँओर सिर्फ एक ही आवाज़ सुना रहा है कि, आपस में दूरी बनाए रखें, संक्रमण से बचें तब इस अवस्था में उन लोगों की वो क्रियाएं याद आ गईं जो दशकों पहले बिना किसी अपील के कुछ ऐसे ही जीया करते थे। इस मामले में ऐसा लगता है कि उनकी हर क्रिया न सही लेकिन, आधुनिकता के साथ जितना सम्भव हो उतना तो किया ही जा सकता है।
सोचिए, हम अपनी जीवनशैली कैसा बना चुके हैं जिसमें पर्याप्त समय होते हुए भी उन क्षणों के लिए समय की कमी दिखती है जिससे जीवन में ऊर्जा का संचार होता है। हमारे पूर्वज तो बिना आधुनिक सुविधाओं के भी परिवार से लेकर रिश्तेदार तक हमेशा कनेक्ट रहते थे और आज हम आधुनिकता के जाल में कैसे फंसे हैं कि, हमारे पास न घर में सबको देने के लिए पर्याप्त समय है और न ही बाहर। हाथों में हर पल मोबाईल तो है लेकिन, महज एक या दो को छोड़कर बाकी के रिश्तेदारों से कब बात हुई है शायद ही आपको याद हो। कैसी यात्रा है यह जिसमें रोज साथ रहना है लेकिन, समय इस कदर नहीं है कि जन्मदिन की बधाई देना भी अब शायद हम फोन से पसंद करने लगे हैं।
क्या आधुनिक युग है और कैसी जीवनशैली? अपने पूर्वजों की जीवन यात्रा को देखने की कोशिश करिए तो पता चलता है कि, जीवन को कैसे जीते थे वो लोग। दिमाग को थोड़ा सा पीछे के दृश्य देखने का आदेश दीजिए............मेरा दावा है कि जैसे ही आपका दिमाग आपको आपके पूर्वजों के जीवन की ओर लेकर बढ़ेगा सहज ही आप यह अनुभव करेंगे कि, जीवनशैली कैसी होनी चाहिए जिसमें शरीर निरोगी हो, चहुओर खुशी हो और समाज स्वस्थ तथा संस्कारी हो........... यह बात शायद ही उनसे बेहतर कोई जानता हो। उनका जीवन सहज, सरल और स्वच्छता के साथ स्वस्थ रहता था यह कैसे और क्यों था? शायद इस प्रश्न का उत्तर आसानी से तब समझ पाएंगे जब आप पीछे मुड़ेंगे। तब आप देख पाएंगे कि, किस प्रकार उनका अपना बर्तन हुआ करता था। वो जहां गए साथ जाता था। उसी से खाना, पीना और और फिर उसी से नहाना। कई पूजनीय जनों को तो मैं व्यक्तिगत जनता हूँ जो अपनी 80-90 वर्ष की अवस्था में भी घर हो चाहे बाहर स्वयं के हाथों बना खाना ही ग्रहण करते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कि, मैं यहां यह सब क्यों चर्चा कर रहा हूँ। जवाब यह है कि, जब वर्तमान चहुँओर सिर्फ एक ही आवाज़ सुना रहा है कि, आपस में दूरी बनाए रखें, संक्रमण से बचें तब इस अवस्था में उन लोगों की वो क्रियाएं याद आ गईं जो दशकों पहले बिना किसी अपील के कुछ ऐसे ही जीया करते थे। इस मामले में ऐसा लगता है कि उनकी हर क्रिया न सही लेकिन, आधुनिकता के साथ जितना सम्भव हो उतना तो किया ही जा सकता है।
दरअसल स्वछता तो हमेशा से हमारा संस्कार रहा है लेकिन, आज विचारणीय यह है कि हम इस मामले में कहाँ हैं? इस पर मंथन करिए। विचार करिए कि, हम डिस्पोजल की दुनिया में जी रहे हैं लेकिन, संक्रमण का खतरा पहले की मुकाबले तेजी से हमें भयभीत करने में लगा हुआ है। हम कहाँ पर हैं और कैसी जीवनशैली में जी रहे हैं जिसमें स्वच्छ कैसे रहा जाय इस बात को याद दिलाना पड़ रहा है। यह याद दिलाना पड़ रहा है कि, अनावश्यक घर से बाहर न निकलें। संक्रमण न फैले इसके लिए प्रशासन को यदि कड़ा रुख अख्तियार करना पड़े, डंडे चलाने पर मजबूर होना पड़े तब ऐसी स्थिति में फिर एक बार वही प्रश्न सामने आता है कि हम कहाँ पर खड़े हैं? आज हम किस जीवनशैली में जी रहे हैं जिसमें सामान्य संस्कारों की कमी दिखाई दे रही है।
अति सुन्दर
ReplyDelete