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हेलो...भैया !

सुबह से बिना कुछ खाए-पिए फोन की खनखनाहट सुनने को तरस रहे रुक्मिणी के कानों ने जैसे ही घंटी की आवाज सुनी, बिना पल गवांए खुशी के हर तिनके को समेटते दौड़ती हुई फोन रिसीवर को उठाकर बिना कुछ सुने बोल पड़ी हेलो..........भैया.............कैसे हो? मेरी राखी आपने बांध ली.........................। आपको पता है भैया....................आपकी बहन आपके फोन का ही इंतजार कर रही थी। आज के दिन कितनी देर से आपने फोन किया....................अच्छा चलो, पहले ये बताओ आपने सुबह से कुछ खाया है या नहीं। मुझे बहुत जोर की भूख लगी है भैया............। बिना दूसरी साँस लिए और पता नहीं क्या-क्या बोलते हुए सबेरे से उदास बैठी रुक्मिणी का अभी खुशी पर पूर्णतया कब्जा शुरू ही हुआ था कि, अचानक उसकी आवाज पर ब्रेक लग गया……………।
दरअसल, आया हुआ फोन उसके भाई का नहीं बल्कि कम्पनी से आपरेटर का था जो, बकाये बिल की याद दिलाने के लिये किया था। रुक्मिणी का खिलखिला चेहरा कुछ ही देर में फिर मायूस हो गया और रिसीवर रख दुबारा उदासी से दोस्ती करते हुए वह बैठका में उस टेबल के बगल में जा कर बैठ गई जिस पर उसके इंजीनियर भाई प्रमोद की फोटो रखी थी। हँसते हुए प्रमोद के फोटो को देख अचानक अपना सारा गुस्सा उतारते हुए बोल पड़ी। आज मै भी देखती हूँ कि, आप मुझे याद करते हो या नहीं। हाँ एक बात और सुन लो चाहे सूरज पूरब के बजाय पश्चिम से क्यों न उगे खाना तो तभी खाऊँगी जब तक हर साल की तरह आप मुझसे बात नहीं कर लेते। एक तरफ भाई के फोटो को देख रुक्मिणी बड़बड़ाये जा रही थी और दूसरी तरफ उसकी आँखें बाढ़ से जूझती नजर आ रहीं थीं। बड़े भैया के फोटो को ही हकीकत समझ उससे प्यार, दुलार, गुस्सा और लड़ाई में रुक्मिणी इतनी मशगूल थी कि, उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी पुरानी और सबसे करीबी दोस्त रानी अपने नये मोबाइल जिसमे गाना बज रहा था................बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बाधा…………………….के साथ उसके बगल में बैठ कर उससे कुछ कहना चाह रही है। रानी अपने नए मोबाइल को दिखाते हुए बोले जा रही थी..................हे रुक्मिणी देख तेरे से मैंने बताया था न कि, अगर मै 12वीं में फर्स्ट आई तो भैया मुझे नया मोबाइल देंगे सो देख आज राखी के दिन मुझे मेरा तोहफा मिल गया।
प्रमोद के प्यारे दोस्त रमेश की बहन रानी इन बातों को रुक्मिणी से कहते हुए इतना खुश दिख रही थी कि, उसके शब्द लड़बड़ा रहे थे। आखिर खुश हो भी क्यों न, उसे उसका तोहफा इतने अच्छे मौके पर जो मिला था। आर्थिक मंदी के दौर में इंजीनियरिंग पास कर अनेकों कंपनियों में हाथ-पांव मारने के बाद अपने पिता की छोटी सी खेती को अच्छे ढंग से करके पैसे कमाने का दृढ संकल्प लिए और परिवार की सभी जिम्मेदारियों को निभाते व दुःख सुख में सबके साथ रह रहे उसके प्यारे भैया रमेश हर वक्त उसके आँखों के सामने जो रहता है। लेकिन, रुक्मिणी के आँखों से अचानक आंसू आते देख रानी खामोश होकर बोल पड़ी....................अरे रुक्मिणी तू रो रही है। पगली आज तो ख़ुशी का दिन है। मैं समझ रही हूँ कि तेरे प्रमोद भैया हमारे इस त्योहार में तेरे पास नहीं आ पाये हैं। तू इसी लिए रो रही है। लेकिन, वो तो इस बार तेरे को बड़ा तोहफा देंने वाले थे न। वो तो बहुत पैसा कमाते हैं। चल सबसे पहले ये बता तेरा कंप्यूटर कहाँ है जो तेरे भैया ने इस बार राखी पर भेजने के लिए कहा था। चल दिखा ना। ये अचानक क्या हो गया तेरे को आज रुक्मिणी? खुशी के माहौल में तेरी आँखें क्यों भरी हैं दोस्त?
रानी के काफी पूछने पर कुछ देर बाद जमीन पर गिरे अपने दुप्पटे के एक कोने से आँखों को पोंछती हुई रुक्मिणी...........अरे अरे कुछ नहीं, तू बैठ न। क्या पकवान बनाई है आज ये बता? रुक्मिणी ने बात को बदलने की कोशिश की परंतु, दोस्त तो होता ही है बिना बोले हर बात समझने वाला। दोस्त वही होता है जिसे शायद अपने दोस्त की हर स्थिति में हलचल पैदा हो जाय। रानी बेचैन होकर बोली.............रुक्मिणी तेरे को बताना ही पड़ेगा इन आंसुओं का राज। बात को घुमाने की कोशिश मत कर। आखिर में रानी की जिद् के आगे उसकी एक न चली और फिर बोल पड़ी.....................कुछ नहीं यार देख ना भैया से बोली थी की राखी वाले दिन अपना मोबाइल स्विच ऑफ मत रखना। आँखों ने सैलाब से फिर एक बार नाता जोड़ना चाहा परन्तु अपने आपको सँभालते हुए रुक्मिणी............... पता नहीं क्योँ उनका मोबाइल बंद है? आज सुबह से भैया ने अभी तक कोई कॉल भी नहीं की। बस इसीलिए थोडा अच्छा नहीं लगा रहा। कुछ पता नहीं चल पा रहा कि उनको मेरी राखी मिली भी है की नहीं। चार दिन पहले सुबह बात हुई थी तब तो उन्होंने राखी नहीं पहुचने की बात की थी। बात होती तो कंप्यूटर की एक बार फिर से उनको याद दिला देती।
उधर, प्रमोद भी क्या करे बिचारा उसने और रमेश ने एक ही साथ इंजीनियरिंग पूरी की थी। उस आर्थिक मंदी में कंपनियों की मार को देख रमेश यहीं रुक गया और हमेशा घर पर सबके साथ रहने के सपने देखने वाले प्रमोद को उसके पिता ने लाखों रुपये अतिरिक्त खर्च कर विदेश जाने पर मजबूर कर दिया। खैर, बे मन प्रमोद के वहां पहुचने पर उसके पिता के मित्र ने उसे नौकरी तो दिला दी लेकिन, इंजीनियर की नहीं और पिता की इच्छा का सम्मान करने के लिए इंजिनीयर प्रमोद आर्थिक मंदी के उस जटिल दौर में इंजिनीयर साहब नहीं बल्कि ड्राईवर बन गया।
चूँकि, आर्थिक मंदी चरम पर थी। कंपनियों के अनुभवी इंजिनीयर नौकरी से बेदखल हो रहे थे ऐसे में, बिना अनुभव वाले प्रमोद को कोई भी कम्पनी रखने को तैयार नहीं थी। अब प्रमोद बेचारा क्या करता? उसे विदेश में नौकरी तो करनी ही थी। आखिर, “उसके पिता नदी के उस पार वाले गांव के स्कूल में हेड मास्टर जो रह चुके हैं। समाज में अपनी इज्जत को शयद और ऊँचा बनाने के लिए अपने इकलौते बेटे को विदेश भेजा है ताकि, अगल-बगल के क्षेत्र में लोगों से ये कह सकें कि उन्होंने अपने बेटे को इतना काबिल बनाया है कि वो विदेश में नौकरी करता है”। इसलिए प्रमोद को विदेश में पहुँचने के बाद वहां रुकना ही था। एक कम्पनी में इंजिनीयर नहीं ड्राइबर बन गया और एक मैनेजर की गाड़ी चलाने लगा।  साहब का काफी व्यस्त कार्यक्रम रहता था। प्रमोद एक बार घर से निकलता था तो वापस कमरे पर पहुँचने में उसे कई दिन बीत जाते थे। इधर चार दिन पहले ही वो अपने साहब को लेकर दूसरे शहर गया था। घर से निकलते वक्त जल्दबाजी में वो अपना फोन कमरे पर ही भूल गया और चार्ज न होने के कारण कमरे में रखा उसका मोबाईल स्वीच ऑफ भी हो गया था। घर से बहुत दूर एकांत में बैठे प्रमोद को आज का दिन याद तो था कि, आज रक्षाबंधन है और उसकी बहन की भेजी हुई राखी कमरे पर है। उसे पता था कि, उसकी प्यारी बहन रुक्मिणी उसके फोन का इंतजार कर रही होगी। बड़ा भाई होने के नाते उसका भी मन व्याकुल था लेकिन, बेचारा वो करे भी तो क्या? मोबाईल पास में था नहीं और घर का नम्बर उसे याद नहीं था।
इधर रुक्मिणी अपनी प्यारी दोस्त रानी के खुश चेहरे को देख कर यह सोच रही थी कि, किस तरह पिताजी ने भैया को “झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए जबरदस्ती विदेश भेजा”। आज अगर भैया यहाँ होते तो कम से कम आज के दिन हम लोग साथ बैठ कर खाना खाते। अब मैं पिताजी को समझाऊंगी कि देखिये रमेश यहीं खेती ही करके कैसे अपने परिवार के साथ खुशी से है। भैया का फोन जब भी आएगा तो उससे भी बोल दूंगी कि भैया मुझे कंप्यूटर नहीं चाहिए आप घर आ जाईये। यहीं कोई दुकान कर लीजिये..........................मैं उसमें आपका साथ दूंगी। काफी देर से यही सब सोचते हुए रुक्मिणी एक बार फिर कहीं खो सी गई थी कि, अचानक अपने कंधे पर अपनी बूढी माँ के लचीले हाथ का एहसाश पाकर पलट कर उसकी ओर देखते ही बोल पड़ी...................माँ, भैया ने फोन किया? जबकि, उसकी माँ उसे काफी देर से यह समझाने कि कोशिश कर रही थी कि, अब खाले बेटी................... दिन के तीन बज गए और तुमने सुबह से कुछ भी नहीं खाया। आखिर, कब तक इंतजार करेगी प्रमोद के फोन का। हो सकता है कि कहीं ब्यस्त हो गया हो। आखिर तेरी राखी तो उसे मिल ही गयी होगी और अब तक तो वो बांध भी लिया होगा………………………………।

Comments

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  2. well crafted , deep emotionally rooted showing the great sanctity of the institution of brother and sister relationship , it was just first part of the story , but then it takes turn and exposed the naked truth of distortion and dilution of relations in this globalized cum alienated world.
    fantastic creation...

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