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इंसान निर्जीव है!

इंसान एक जीव है और कोई भी जीव सजीव होता है- ऐसा इसलिए क्योंकि वह चल सकता है, बोल सकता है, सोच सकता है और कुछ भी कर सकता है। ऐसा बचपन से सुनता आया हूँ। अबतक के जीवन यात्रा में जितने भी लोगों से साक्षत्कार हुआ और जिसके पास जितना अधिक ज्ञान मार्ग हैं, सभी ने अपनी पकड़ के अनुसार उस पर चलाते हुए यह बताने और समझाने में कहीं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी कि जीव चाहे किसी भी रूप में हो वह सजीव ही होता है। आज भी अनेकों विद्वान अपने ज्ञानदीप से यह उजाला करने की लगातार कोशिश में लगे रहते हैं कि जीव के अनेक रूप हैं और सभी रूपों में वह सजीव ही होता है। ऐसे में यह कहना शायद गलत हो परंतु, पता नहीं क्यों दिमाग का एक छोटा सा कोना तमाम ज्ञानार्जन के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा कि जीव सजीव होता है, ऐसा वह मानने को तैयार ही नहीं। बार-बार उसे समझाने पर भी उसे यही लग रहा है कि जीव  तो सजीव है ही नहीं। हकीकत में यह भी निर्जीव है जैसे कमरे में रखी एक कुर्सी। और जिस प्रकार उस कुर्सी के सजीव होने का कोई सवाल नहीं, ठीक उसी प्रकार किसी भी जीव चाहे वह किसी भी रूप में हो उसके सजीव होने का भी कोई सवाल पैदा न...
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सोचिए, हम कहाँ पर खड़े हैं

जी हाँ,  आज विश्व के अधिकतर देश कोरोना के रूप में फैले आतंक के चपेट में हैं। अपना देश भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और पिछले कुछ दिनों से लगातार इसके आंकड़ों में वृद्धि से समूचा देश चिंतित है। इससे बचाव के हर सम्भव कदम उठाने में निश्चित तौर पर सरकार काफी तेजी से आगे बढ़कर कार्य कर रही है। विशेषज्ञयों की मानें तो इससे लड़ने में सोशल डिस्टेंस और स्वच्छता ही एक मात्र उपाय के रूप में सबसे बड़ी दवा भी साबित हो सकता है जिसे हम सभी पिछले कई दिनों से जी रहे हैं। हम सभी घरों में बैठे देख भी रहे हैं कि, पूरे देश में इसका कड़ाई से पालन हो और करवाया भी जा रहा है। प्रशासन द्वारा लगातार लोगों को सुझाव भी दिए जा रहे हैं कि, घरों से अनावश्यक बाहर न निकलें। बाहर होने की स्थिति में चेहरे को अवश्य ढ़क कर रखें। एक दूसरे से दूरी बना कर रहें। हाथों को लगातार धोते रहें तथा बार-बार आँख, नाक और मुँह को छूने से बचें। यानी, कुल मिलाकर स्वच्छ रहने की कोशिश करें और अनावश्यक घर से बाहर निकलने से बचें ताकि संक्रमण न फैले। लेकिन, इस दौरान एक सवाल जो लगातार परेशान कर रहा है वो यह कि, आखिर आज प्रशासन क्यों उपरोक्त ...

तकनीक और इंसान

हर देश को आगे बढ़ाने में उस देश के द्वरा अपनाई गयी नयी-नयी तकनीकों का रोल हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। दरअसल यह तकनीक ही ऐसी ताकत है जो विश्व में किसी भी मुल्क को एक अलग पहचान देने में मददगार होती है। आज जितने भी मुल्क विकसित राष्ट्र की श्रेणी में गिने जाते है वो सिर्फ अपनी-अपनी तकनीक के बलबूते पर ही। यह रोज देखा जाता है की किस तरह एक देश दूसरे देश के किसी नए अविष्कार के बाद उससे भी बड़ा खोज कर बैठता है और दुनिया को अपनी मज़बूत पहचान दिखाने की हर सम्भव कोशिश करता है। आज हर देश अपनी मजबूती में कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है और शायद इसी लिए हर रोज नए-नए अविष्कार होना विश्व में अब एक आम बात हो गयी है। विश्व के विभिन्न प्रमुख देशों के बीच भारत ने भी अपने आपको आज तकनीक के क्षेत्र में उपलब्धियों के दिवार को खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। बहुत ही तेज़ी के साथ तकनीक के क्षेत्र में तरक्की की है हमने और दुनिया को दिखा दिया है कि, हम हर हाल में किसी भी ताकत को टक्कर देने में सक्षम हैं। आज भारत ने परमाणु ताकत से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में अविष्कार कर अपने को मजबूत करने की भरपूर कोशि...

जश्न की रात- बेदर्द निगाहें, बच गई तो फिर मिलूंगी...

चलो पिछले वर्ष तो बच गए हम, अब आगे...............। आगे क्या, ईश्वर की मर्जी। इस बेरहम दौर में कब और किस दिन किसका नम्बर आ जाये कौन जाने? इसे अपनी लम्बी उम्र मानें या फिर ईश्वर की असीम कृपा जिसकी बदौलत एक वर्ष और हम सभी एक दूसरे से मिल पाए। अरी पगली, प्रभु की कृपा ही तो है कि जीवन में अबतक किसी मांस प्रिय सज्जन की निगाह हमारे ऊपर नहीं पड़ी और पूरे वर्ष अनेकों मौकों पर चहुँओर घूमती कातिलाना निगाहों से बचते रहे हम। वैसे एक दिन तो किसी न किसी के थाली की शोभा बढ़ाने के लिए उसका आहार बनना ही है हमें फिर, घबराना क्या.............? सही कहते हो जी,  अब कब कौन अपने वर्ष की शुरुआत हमारे अंत से करे कौन जाने? आज और अबतक गला बचा है तो इसलिए, आज ही हमारे तरफ से तुम सभी और इस धरती पर विचरण करने वाले असंख्य जीवों को नए वर्ष की बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। हाँ, आने वाली जश्न की रात और बेदर्द निगाहों से बच पाई तो फिर मिलेंगे...........। कुछ ऐसी ही बातें शायद उस कुनबे के मालिक और मालकिन आपस में कर रहे थे जिन्होंने बच्चों, मित्रों और अपने रिश्तेदारों सहित पिछले 31 दिसम्बर की रात घबराहट के साथ बम...

...कि वो, किस रूप में अब हो गए

(धर्मेश तिवारी) सोचता हूँ ये कि वो, किस रूप में अब हो गए क्या कहे थे-किया क्या, थे वादे कुछ जो खो गए होंगे वो दुनिया की खातिर, इक मुसाफिर की तरह पर कर दिया वो काम जो, घर में नजर से खो गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए क्या बात थी, इक समय था, हर ओर चर्चे में रहे हर बात में हैं आज भी पर, दूर कितना हो गए हैं अडिग सुनता हूँ पर, दिखते मगन-मद-चूर वो जिस मिट्टी में चल के बढ़े, उसमें जहर को बो दिए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए उनको बताऊं किस कदर, जनता ने पीया है जहर अरे फैसले दर फैसले, जनता ने जीया है कहर सब दर्द को पीते रहे हम, खूबसूरत कल मिले पर है नतीजा खूब क्या, हम एक थे और बंट गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए हर घाव जो भरने थे छोड़ा, नए कुछ और मिल गए जो बातें करते थे कभी, लगता जुबां अब सिल गए मूर्ख है जनता सुना, पर वो भी कान खोलें और सुनें कि आंसुओं से आमजन के, कइयों के मुकद्दर मिट गए ……….…..कि वो, किस रूप में अब हो गए x

हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा...

(धर्मेश तिवारी) कर के देखो सम्मान कि हिंदुस्तान बढ़ेगा हाँ हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा शुरुआत कराओ बच्चों की अ आ इ ई से मजबूत अगर हो नीव तो घर में जान बढ़ेगा हाँ, हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा... गुड मॉर्निंग अच्छा है देखो तो प्रणाम बोलकर जो प्यार नहीं पाया होगा वो प्यार बढ़ेगा डीनर की बजाय इस्तेमाल हो गर भोजन का वादा है यह कि, घर में खाने का मीठास बढ़ेगा हाँ, हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा... हिंदी से ही पहचान नहीं है अंग्रेजी से जो खोया है पहचान वही पहचान बढ़ेगा है गूंज सुनाई देती इसकी अब दूर देशों में दिनचर्या में इसे लाओ कि, इसका विस्तार बढ़ेगा हाँ, हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा... सर में भी है सम्मान पर श्रीमान इससे बेहतर इसको अपनाने से खुद सबका ज्ञान बढ़ेगा हाउ आर यू अच्छा है अगर ये हिंदी में हो ऐसा करके देखो हर इंसा का मान बढ़ेगा हाँ, हिंदी के सम्मान से हिंदुस्तान बढ़ेगा... गर रखना जिंदा है हिंदी को हिंदुस्तान में हिंदी में ही खाना, चलना और सोना होगा इजी भी है आसान भी है अपनाकर तो देखो अरे इससे सिर्फ कल्चर ही नहीं हमसब की संस...

हेलो...भैया !

सुबह से बिना कुछ खाए-पिए फोन की खनखनाहट सुनने को तरस रहे रुक्मिणी के कानों ने जैसे ही घंटी की आवाज सुनी, बिना पल गवांए खुशी के हर तिनके को समेटते दौड़ती हुई फोन रिसीवर को उठाकर बिना कुछ सुने बोल पड़ी हेलो..........भैया.............कैसे हो? मेरी राखी आपने बांध ली.........................। आपको पता है भैया....................आपकी बहन आपके फोन का ही इंतजार कर रही थी। आज के दिन कितनी देर से आपने फोन किया....................अच्छा चलो, पहले ये बताओ आपने सुबह से कुछ खाया है या नहीं। मुझे बहुत जोर की भूख लगी है भैया............। बिना दूसरी साँस लिए और पता नहीं क्या-क्या बोलते हुए सबेरे से उदास बैठी रुक्मिणी का अभी खुशी पर पूर्णतया कब्जा शुरू ही हुआ था कि, अचानक उसकी आवाज पर ब्रेक लग गया……………। दरअसल, आया हुआ फोन उसके भाई का नहीं बल्कि कम्पनी से आपरेटर का था जो, बकाये बिल की याद दिलाने के लिये किया था। रुक्मिणी का खिलखिला चेहरा कुछ ही देर में फिर मायूस हो गया और रिसीवर रख दुबारा उदासी से दोस्ती करते हुए वह बैठका में उस टेबल के बगल में जा कर बैठ गई जिस पर उसके इंजीनियर भाई प्रमोद की फोटो रखी...

हाँ मुझे भी एक औरत...

सुबह जल्दी उठ कर स्नान-ध्यान कर लेने के बाद मन के उफान को रोकते नाश्ता कर रहे मोहन के माँ को लगा रहा था की आज वो किस तरह उसे दो रोटी ज्यादा खिला दे। उसे लग रहा था कि उसकी इकलौती संतान मोहन आज यदि दो रोटी ज्यादा खा के जायेगा तो इंटरव्यू में उसका सलेक्शन होने से कोई रोक नहीं पायेगा और उसका बेटा नियुक्ति पत्र लेकर ही अपने घर आएगा। फिर, फिर क्या? उसकी भोली भाली अनपढ़ माँ शान से सबसे कहेगी कि मेरे प्यारे मोहन को नौकरी मिल गयी। वो पुरे मुहल्ले घूमेगी और इस कदर सबसे मिलेगी कि, कोई भी व्यक्ति मिठाई खाने से वंचित न रह जाए। आखिर सोचे भी क्यों नहीं मोहन दुनिया के लिए भले ही कुरूप और बदरंग था पर उसके लिए तो उसका बेटा था। किचन में बेलन लिए खड़ी मोहन के लिए जन्नत उसकी प्यारी बूढ़ी माँ इतना सोचने में मशगूल थी कि, उसे पता भी नहीं चला कि, पहले से ही काफी लेट हो चुका मोहन   उसके रोटी न सेक पाने की वज़ह एक रोटी कम ही खा मुह को धोकर घर से निकलने को तैयार था और जैसे ही बोला अच्छा माई अब मै जा रहा हूँ आशीर्वाद दे की आज नौकरी मिल ही जाय। यह  शब्द सुन अचानक उसकी माँ का ध्यान टूटा और दौड़ते हु...